अच्छे रहे 75, स्वर्णिम होंगे अगले 5 साल : आईटी इंडस्ट्री का लक्ष्य, अबकी बार 300 अरब डॉलर के पार

 आज दुनिया के बाजार में भारतीय ‘हीरे’ की बहुत डिमांड है। ये हीरे पत्थर के नहीं, प्रतिभा वाले हैं। यानी जब बात टैलेंट का आती है, दुनिया भर की कंपनियां भारत की ओर देखती हैं। भारत की यह छवि बनाने में बहुत बड़ा योगदान भारत के आईटी सेक्टर का है। इसी सेक्टर ने भारत को सांप-सपेरे से सॉफ्टवेयर वाला देश बना दिया। आंकड़े गवाह हैं और इतिहास साक्षी है कि भारत ने बीते कुछ दशकों में आईटी के क्षेत्र में सफलता के ऐसे कोड लिखे हैं जिसने उसे दुनिया का सिरमौर बना दिया है। दुनिया भर की बड़ी कंपनियों में भारतीय उच्च पदों पर काबिज हैं। शायद ही कोई ऐसी बड़ी आईटी कंपनी होगी जो भारतीय मेधा की प्रतिभा का लोहा न मानती हो। तो आइये जानते हैं कि 1970 के दशक के ठीक पहले जन्मे इस सेक्टर ने कैसे भारत की कामयाबी का एक नया इतिहास लिखा और जानेंगे कि अगले पांच साल में इस इंडस्ट्री में क्या बड़े बदलाव होने वाले हैं।

नैस्कॉम के वाइस प्रेसिडेंट और हेड ऑफ पब्लिक पालिसी आशीष अग्रवाल बताते हैं कि भारत में आईटी इंडस्ट्री सेक्टर का जन्म 1970 के दशक में हुआ है। 45 साल बाद 100 बिलियन की इंडस्ट्री बन गई। 2013-14 में इंडस्ट्री ने इंडस्ट्री ने इस स्तर को स्पर्श किया। पर अगला 100 बिलियन डॉलर जुड़ने में सिर्फ 7 साल लगे। यानी आज 200 बिलियन डॉलर हो चुका है। आशीष अग्रवाल के मुताबिक आईटी सेक्टर में भारत से 150 बिलियन डॉलर का निर्यात हो रहा है और 45 अरब डॉलर का घरेलू बाजार है। सर्विस सेक्टर के कुल निर्यात में 52 फीसद का योगदान आईटी सेक्टर है। वहीं आईटी सेक्टर का आकार भारत के जीडीपी का 7 फीसद है।

आशीष बताते हैं कि 100 देशों में भारतीय आईटी सेक्टर के उपभोक्ता हैं। करीब-करीब सभी एमएनसी का डेवलपमेंट सेंटर भारत में हैं। भारत में 45 लाख लोगों को रोजगार मिला है।

एनआईसीएसआई के मैनेजिंग डायरेक्टर पीके मित्तल कहते हैं कि पिछले 75 साल के सफर को देखें तो आजादी के वक्त देश की जीडीपी 3.6 बिलियन डॉलर थी। आज भारत की जीडीपी 100 गुना बढ़ी है। आईटी सेक्टर को देखें तो कई पहलुओं में इसका विकास हुआ है। इसने देश की जीडीपी को बढ़ाया है। इसने भारतीयों के काम करने और जीने का तरीका बदला है। हमें ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने के लिए आरटीओ नहीं जाना पड़ता है। वहीं आईटी सेक्टर ने ही देश में डिजिटल ऑफिस बनाए हैं। एनआईसी ने कई ईगवर्नेस सिस्टम का भी विकास किया है। एनआईसी ने मनरेगा और किसान योजना का पैसा सीधे अकाउंट में भेजने में मदद की है। इससे लोगों का भरोसा सरकार में बढ़ा है। वहीं लोग गांव से ही अपने फार्म आदि भर पा रहे हैं। इससे लोगों की ऊर्जा सही दिशा में लग रही है। आने वाले सालों में हम गांव के लोगों को बेहतर योजनाएं दे सकेंगे और उनकी समस्याओं का समाधान कर पाएंगे।

स्टार्टअप कल्चर तेजी से बढ़ रहा

आईआईटी रोपड़ और ऑस्ट्रेलिया की मोनाश यूनिवर्सिटी से जुड़े प्रोफेसर डॉ अभिनव ढल कहते हैं कि भारत की आईटी इंडस्ट्री देश की अर्थव्यवस्था रीढ़ है। अब यह इंडस्ट्री पूरे देश में फैल चुकी है। 1970 में यह इंडस्ट्री आगे बढ़ी। अब इस सेक्टर में कई इनोवेटिव काम हो रहे हैं। और नई तकनीकों को अपनाने में सबसे आगे रही। जैसे ब्लॉकचेन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस। इंडस्ट्री हमारी बड़ी आबादी की समस्याओं को सुलझाने में मदद कर रही है। इंडस्ट्री सरकार के साथ मिलकर आधार, यूपीआई और कोविन जैसे प्रोग्राम चला रही है। स्टार्टअप कल्चर भी तेजी से बढ़ रहा है और सरकार भी स्टार्टअप इंडिया के जरिए इनकी मदद कर रही है। यूनिकार्न भी तेजी से विकसित हो रहे हैं। इससे निवेशकों का विश्वास बढ़ा है। आईटी इंडस्ट्री भविष्य में भी लोकल और ग्लोबल समस्याओं का समाधान करेगी। जैसे सस्टेनेबल डेवलेपमेंट।

अगला लक्ष्य सेमीकंडक्टर चिप बनाना

वहीं आईआईटी बाम्बे के प्रोफेसर राजेश झेले कहते हैं कि जब कोई व्यक्ति विदेश में भारत के बारे में बात करता है तो उसके दिमाग में सॉफ़्टवेयर, बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग आती है। पर आखिर हम यहां तक पहुंचे कैसे? दरअसल आज के आईटी सेक्टर की तरक्की में हमारी पीढ़ी को पालने वाले माता-पिता का बड़ा योगदान है। क्योंकि उनका एक ही ध्येय होता है कि हमारा बेटा डॉक्टर या इंजीनियर बने और उसकी अंग्रेजी अच्छी हो। इसी ने भारत में बड़ी संख्या में इंजीनियर और प्रोफेशनल को तैयार किया है। इसी के दम पर मौका मिलते ही हम आईटी सेक्टर में छा गए। भारतीयों के गणित और विज्ञान के अच्छे नॉलेज ने हमें सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट में आगे बढ़ाया। राजेश झेले के मुताबिक हमने हमेशा कम साधन में अपनी प्रतिभा के दाम पर कामयाबी हासिल की है। आधार की कामयाबी भी इसकी एक मिसाल है। क्योंकि 140 करोड़ की आबादी में आज करीब-करीब सभी के पास आधार है। वहीं आज पूरे देश में इंटरनेट कनेक्शन और स्मार्टफोन है। यूपीआई से पैसा भेजना काफी आसान हो गया है। सभी फॉर्च्यून 500 कंपनी का ऑफिस भारत में है और हर कोई भारत से जुड़ना चाहता है। मोबाइल से लेकर अच्छी क्वालिटी की कार तक भारत में बन रही हैं। उनका मानना है की भारत में अगली बड़ी क्रांति सेमीकंडक्टर टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में होगी। सेमीकंडक्टर इंटीग्रेटेड चीप सिलिकॉन से बनाई जाती है जिसे की रेत (मिट्टी) से प्राप्त किया जाता है। अगर हम चिप बनाने में आगे बढ़े और चिप डिजाइन से लेकर चीप फेब्रिकेशन की क्षमता भारत के पास आ जाती है, तो यह एक बड़े सपने के पूरा होने जैसा होगा। उन्हें विश्वास है की आने वाले कुछ सालों में हम हमारी अपनी मिट्टी से बनी हुई सेमीकंडक्टर चीप इस्तेमाल कर रहे होंगे।

अगले पांच साल में आईटी सेक्टर में 10 बदलाव होंगे

1. 300 बिलियन डॉलर की हो जाएगी इंडस्ट्री

आशीष अग्रवाल बताते हैं कि 4-5 साल में आईटी सेक्टर में 100 बिलियन डॉलर का इजाफा होने की उम्मीद है, यानी यह 300 बिलियन डॉलर की इंडस्ट्री बन जाएगी। आशीष के मुताबिक अभी इंडस्ट्री का ध्यान अपना आकार 350 बिलियन डॉलर को पार करने पर है। अगर हम पूरा प्रयास करें तो जल्द ही हम 500 बिलियन डॉलर को भी पार कर जाएंगे। आईटी भारत के कृषि सेक्टर में और फाइनेंस सेक्टर में फिनटेक और ई गवर्नेंस के जरिए योगदान दे रहा है। भारत के लिए स्मार्ट सिटी बना रहा है। वहीं वैश्विक स्तर पर भी भारत की आईटी सेक्टर का विस्तार होगा। हम वर्क के हाइब्रिड मॉडल के जरिए आईटी सेक्टर आसानी से टीयर-2 और टीयर-3 शहरों में फैल सकता है। यानी आईटी मेट्रो शहरों के अलावा छोटे शहरों में भी विस्तार होगा। वहीं तेजी से बढ़ते आईटी स्टार्टअप और इनोवेशन से अगले पांच से सात साल में यह सेक्टर नई ऊंचाइयों पर पहुंचेगा।

2. सॉफ्टवेयर प्रोडक्ट इंडस्ट्री होगी 100 बिलियन डॉलर की

सॉफ्टवेयर प्रोडक्ट इंडस्ट्री में हम काफी काम कर सकते हैं। यह अभी सिर्फ 9 बिलियन डॉलर की है। यहां विस्तार की काफी संभावना है। भारतीय सॉफ्टवेयर प्रोडक्ट इंडस्ट्री 2025 तक 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर की हो सकती है। भारतीय कंपनियां अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस पर लगातार फोकस कर रही हैं और ग्लोबल डिलीवरी सेंटर बढ़ा रही हैं। फरवरी, 2021 में टाटा कंसलटेंसी सर्विसेज ने यूके में अगले साल में 1500 टेक्नोलॉजी कर्मचारियों को नियुक्त करने की बात कही है।

3. डाटा एनोटेशन बाजार और लेबलिंग हब

वित्तीय वर्ष 2020 में भारत का डाटा एनोटेशन मार्केट 250 मिलियन अमेरिकी डॉलर का था। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की घरेलू मार्केट में बढ़ती मांग के कारण इस बाजार के 2030 तक 7 बिलियन डॉलर का होने की उम्मीद है।

4. नई तकनीक से आएंगे नए अवसर

– इंडिया ब्रांड इक्विटी फाउंडेशन की रिपोर्ट के अनुसार क्लाउड कंप्यूटिंग, सोशल मीडिया और डाटा एनालिटिक्स आईटी कंपनियों को ग्रोथ के नए अवसर प्रदान कर रही है ।वहीं मई 2021 में, एचसीएल टेक्नोलॉजीज (एचसीएल) ने एक नया ग्रीनफील्ड बनाने के लिए हिताची एबीबी पावर ग्रिड के साथ एक बहु-वर्षीय अनुबंध की घोषणा की है। इस जुड़ाव के माध्यम से, एचसीएल हिताची एबीबी पावर ग्रिड की मदद करेगा। इससे एक नया, कुशल और आधुनिक स्वतंत्र आईटी संगठन स्थापित करने में मदद मिलेगी। इसके अलावा मई, 2021 में टाटा कंसलटेंसी सर्विसेज ने वियावी सॉल्यूशन के साथ करार किया है। यह करार नेटवर्क टेस्ट, मेजरमेंट और एश्योरेंस सॉल्यूशंस को लेकर है।

5. खूब आ रहा एफडीआई

कंप्यूटर सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर सेक्टर ने मिलकर भारत में एफडीआई के फ्लो को बढ़ाया है। डिपार्टमेंट फॉर प्रमोशन ऑफ इंडस्ट्री एंड इंटरनल ट्रेड की रिपोर्ट के अनुसार अप्रैल 2000 और दिसंबर, 2020 के दौरान इस इंडस्ट्री ने भारत में 69.29 बिलियन अमेरिकी डॉलर का एफडीआई फ्लो लाया है।

6. मॉडर्न क्लाउड का डिप्लॉयमेंट

मई, 2021 में आईबीएम ने टॉप-11 शैक्षणिक संस्थानों जैसे आईआईटी खड्गपुर और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बेंगलुरु के साथ करार किया है। यह करार क्वांटम कंप्यूटिंग के क्षेत्र में ट्रेनिंग और रिसर्च को बढ़ावा देने के लिए किया गया है। 2021 में ही टीसीएस ने वेविन के साथ करार किया है। 2021 में टीसीएस ने इरिक्सन के साथ पार्टनरशिप की है। यह भारत में क्लाउड आधारित रिसर्च और डेवलपमेंट डिजिटल वर्कप्लेस बनाने के लिहाज से की गई है।

7. सरकार भी कर रही खूब जोर आजमाइश

आईटी इंडस्ट्री के लिए लिए शानदार माहौल बनाने के लिए अप्रैल, 2021 में सेटंर फॉर डिप्लॉयमेंट ऑफ एडवांस़्ड कंप्यूटिंग ने तीन इनोवेटिव तकनीक ईजाद की। पहली ऑटोमेटिक पैरललाइजिंग कंपाइलर (सीएपीसी), साइबर सिक्योरिटी ऑपरेशन सेंटर और सीडैक का देशी हाई-परफॉर्मेंस वाला कंप्यूटिंग सॉफ्टवेयर सॉल्यूशंस। मई, 2021 में माईगॉव ने एक इनोवेशन चैलेंज लांच किया था। इस चैलेंज में भारतीय भाषाओं में लर्निंग एप बनाने को कहा गया था। जनवरी, 2021 में भारत और जापान ने इंफॉर्मेशन और कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में एक करार किया था। इसका मकसद 5जी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और सबमरीन फाइबर केबल नेटवर्क को बढ़ावा देना था।

8. टैलेंट पूल बढ़ेगा और आएंगी नौकरियां

नैस्कॉम ने अनुमान लगाया था कि भारत में टैलेंट पूल का आंकड़ा वित्त वर्ष 2021 में 1.17 मिलियन का आंकड़ा पार कर जाएगा। नैस्कॉम का कहना था कि कंपनियों में डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन का दौर चल रहा है। आने वाले समय में आईओटी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ऑगमेंटेड और वर्चुअल रियलिटी के लोगों की मांग बढ़ेगी।

9. नई जियोग्राफिक-एशिया बनेगा बड़ा मार्केट

इंटरनेशनल डेटा कॉर्पोरेशन, नैसकॉम की रिपोर्ट के अनुसार ब्रिक देश, कॉन्टिनेंटल यूरोप, कनाडा और जापान का आईटी पर खर्च करीब 380 से 420 बिलियन डॉलर का है। नई तकनीक को अपनाने और आउटसोर्सिंग से 2023 तक एशिया दूसरा सबसे बड़ा आईटी मार्केट बन जाएगा।

10. ये हैं ग्रोथ के इंजन

हेल्थकेयर, रिटेल और यूटिलिटी ग्रोथ के इंजन होंगे। टेलीमेडिसिन, रिमोट मॉनिटरिंग सॉल्यूशंस और क्लीनिकल इंफॉर्मेशन सिस्टम आईटी की दुनिया भर में मांग बढ़ाएंगे। मीडिया में कंटेंट के डिजिटाइजेशन होने और कनेक्टिविटी बेहतर होने से मौके बढ़ेंगे। डिजिटल बैंकिंग बढ़ेगी। 5जी तकनीक से टेलीकम्युनिकेशन कंपनियों को 2025 तक करीब 10 बिलियन डॉलर का वैश्विक बिजनेस आने की उम्मीद है।

पिछले 7 दशक के महत्वपूर्ण पड़ाव

1.1950 का दशक : पहला आधुनिक कंप्यूटर

भारतीय आईटी और आईटीईएस उद्योग का साइज 1990 में 100 मिलियन डॉलर से बढ़कर 1996 तक 1 बिलियन डॉलर हो गया, जिसने इस देश के विकास को हमेशा के लिए बदल दिया। हालांकि, यात्रा बहुत पहले 1950 के दशक में शुरू हुई जब पहला आधुनिक कंप्यूटर कोलकाता में भारतीय सांख्यिकी संस्थान में स्थापित हुआ।

2. 1960-70 का दशक : इलेक्ट्रॉनिक्स विभाग की स्थापना

1960 के दशक में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों में कंप्यूटर शिक्षा कार्यक्रमों की शुरुआत हुई। भारत सरकार ने कंप्यूटर सहित इलेक्ट्रॉनिक्स के सभी पहलुओं की देखरेख के लिए 1970 में इलेक्ट्रॉनिक्स विभाग (DoE) की स्थापना की गई।

1973 में एक डीओई पैनल ने मिनी कंप्यूटरों के स्वदेशी निर्माण पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत की। पर इस रिपोर्ट को पांच साल के लिए ठंडे बस्ते में रखा गया। 1970 के दशक के मध्य में बहुराष्ट्रीय निगमों ने अपनी हिस्सेदारी को कम कर दिया या विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम के कारण भारत छोड़ दिया। इसके बाद सरकार द्वारा भारत में मौजूदा आईबीएम प्रतिष्ठानों को बनाए रखने के लिए कंप्यूटर रखरखाव कॉर्प की स्थापना की गई।

3. 1974 में आईटी पार्क की स्थापना और बने मिनी कंप्यूटर

पहला स्वदेशी रूप से निर्मित TDC-312 कंप्यूटर इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड द्वारा 1974 में लांच किया गया था। वहीं पहला समर्पित आईटी पार्क (सांताक्रूज इलेक्ट्रॉनिक एक्सपोर्ट प्रोसेसिंग जोन) 1973 में इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों और सॉफ्टवेयर के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए मुंबई में स्थापित किया गया था।

विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम, जिसने भारतीय नागरिकों और संगठनों द्वारा विदेशी मुद्रा के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया, 1973 में भी लागू हुआ। इस अधिनियम ने भारतीय संगठनों के लिए कंप्यूटर आयात करना बहुत मुश्किल बना दिया। अंततः 1978 में मिनी कंप्यूटर नीति की घोषणा की गई, और डीसीएम, ओआरजी और एचसीएल (शिव नादर और टीम द्वारा स्थापित) जैसी कंपनियों ने 1979 में मिनी कंप्यूटर बनाना शुरू किया। वहीं डीओई को विशेष रूप से सॉफ्टवेयर निर्यात के लिए कंप्यूटर के आयात की अनुमति दी गई।

4. आई उद्यमिता की पहली लहर

1980 के दशक में भारत में आईटी उद्यमिता की पहली लहर देखी गई। विप्रो इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी लिमिटेड (अज़ीम प्रेमजी और टीम द्वारा), इंफोसिस (नारायण मूर्ति और टीम द्वारा), एनआईआईटी (राजेंद्र पवार और टीम द्वारा), मस्तक (अशंक देसाई और टीम द्वारा) और कई आईटी कंपनियां बनीं।

सरकार ने भी नई कंप्यूटर नीति लाने सहित कुछ वाटरशेड निर्णय लिए, जिसने कंप्यूटर उद्योग के उदारीकरण की शुरुआत की। रंगराजन समिति की सिफारिशों से बैंकिंग में कम्प्यूटरीकरण हुआ। टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज और इंफोसिस जैसी कंपनियों ने बैंकिंग उत्पादों का विकास किया। राजारमन समिति की रिपोर्ट में सॉफ्टवेयर निर्यात के मुकाबले कंप्यूटरों के आयात के लिए रियायत दी गई हैं। इसी अवधि में प्रतिष्ठित रेलवे यात्री आरक्षण परियोजना शुरू की गई थी।

1980 के दशक में उन्नत कंप्यूटिंग के विकास के लिए नव स्थापित केंद्र ने भारतीय विज्ञान संस्थान, बैंगलोर में एक राष्ट्रीय सुपर कंप्यूटर केंद्र स्थापित किया, और हमने अपना पहला ईमेल भेजा। सिटीबैंक और टेक्सास इंस्ट्रूमेंट्स जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने पहली बार 1980 के दशक के दौरान भारत में सॉफ्टवेयर विकास केंद्र स्थापित किए। इस अवधि में भारत में कंप्यूटर बनाने के लिए कई संयुक्त उद्यम देखे गए- हिंदट्रॉन-डीईसी, एचसीएल-एचपी, पीएसआई-बुल और अन्य, जिससे पीसी अधिक किफायती हो गए।

1982 में गठित मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन फॉर इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी ने बढ़ते आईटी हार्डवेयर उद्योग का प्रतिनिधित्व किया। 1988 में नैसकॉम की स्थापना ने नवजात सॉफ्टवेयर खिलाड़ियों को एक आवाज दी।

5. 1991 में सुपर कंप्यूटर पर काम शुरू

1990 का दशक न केवल आईटी और आईटीईएस उद्योगों के लिए बल्कि पूरे देश के लिए महत्वपूर्ण था। हम उदारीकरण की हवाओं से उत्साहित होकर आगे बढ़े। भारत का सुपर-कंप्यूटिंग कार्यक्रम 1991 में शुरू किया गया था। वहीं उद्योग ने वैश्विक वितरण मॉडल का बीड़ा उठाया, जिसने काम करने के तरीके को फिर से परिभाषित किया। आईएएस अधिकारी एन. विट्ठल द्वारा डिजाइन की गई सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क योजना ने इसमें काफी मदद की। हजारों प्रतिभाशाली लोग इसके वादे से प्रेरित होकर उद्योग में शामिल हुए।

1999 तक, दुनिया में SEI-CMM स्तर 5 के 50 फीसद संगठन भारत से थे। सरकार की उदार नीतियों से उत्साहित होकर, आईबीएम जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत वापस आईं। जीई और नॉर्टेल ने पहले बड़े पैमाने पर विकास केंद्र स्थापित किए। Y2K अवसर ने भारत के लिए अभूतपूर्व अवसर खोले।

6. 2000 के बाद का दौर- पैसे की बारिश

2000 तक, भारतीय आईटी उद्योग 5 अरब डॉलर से अधिक का राजस्व प्राप्त कर चुका था – जो कि 1990 से 50 गुना था।आज, उद्योग का राजस्व अनुमानित 200 बिलियन डॉलर है। वहीं अब भारत वैश्विक स्तर पर तीसरे सबसे बड़े स्टार्ट-अप हब के रूप में अगली प्रौद्योगिकी क्रांति की सवारी करने के लिए भी तैयार है।

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