मराठा आरक्षण विवाद:सोलापुर में प्रदर्शन-हाइवे जाम, आंदोलनकारी सांसद-विधायकों के घर के बाहर जमा हुए ; हिरासत में दो दर्जन प्रदर्शनकारी
मराठा आरक्षण के मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्थगित किए जाने के बाद राज्य के अलग-अलग हिस्सों में प्रदर्शन जारी है। इसी कड़ी में सोमवार को मराठा क्रांति मोर्चा की ओर से सोलापुर जिला बंद का आह्वान किया गया है। आंदोलनकारियों ने सोलापुर में पंढरपुर-पुणे राजमार्ग पर टायर जलाकर प्रदर्शन किया। इस दौरान उनकी पुलिस के साथ झड़प भी हुई, जिसके बाद करीब 2 दर्जन प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया गया है।
फिलहाल, हाईवे अवरुद्ध है और गाड़ियों की लंबी कतार सड़क पर देखने को मिल रही है। एक मराठा, एक लाख मराठों की घोषणा करते हुए, मराठा क्रांति मोर्चा के सदस्य सोलापुर के कई हिस्सों में प्रदर्शन कर रहे हैं। आंदोलन को देखते हुए सोलापुर में बड़ी संख्या में पुलिस बल को तैनात किया गया है। एहतियात के तौर पर सोलापुर में एसटी बस सेवा को बंद कर दिया गया है।
सभी सांसदों और विधायकों के घर के बाहर होगा प्रदर्शन
जिले के सभी विधायकों और सांसदों के घरों के सामने भी आंदोलन किया जाएगा। कार्यकर्ता छत्रपति शिवाजी महाराज चौक पर स्थित भाजपा विधायक विजय कुमार देशमुख के घर के सामने एकत्र होने लगे हैं। मढा में भी मराठा समुदाय से जुड़े लोगों ने सड़क पर टायर जलाकर विरोध-प्रदर्शन किया है। मराठा आरक्षण को स्थगित करने के खिलाफ रविवार को मुंबई में 20 अलग-अलग जगहों पर धरने का आयोजन किया गया था।
इसलिए नाराज है मराठा समाज
पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट ने मराठा समुदाय को नौकरी और शिक्षा में आरक्षण देने वाले महाराष्ट्र सरकार के कानून पर रोक लगा दी थी। इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने इस कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं को संविधान पीठ के पास भेज दिया था। नबंवर 2018 में महाराष्ट्र में बड़ी संख्या में मराठाओं ने आरक्षण के मुद्दे को लेकर आंदोलन किया था, जिसके बाद महाराष्ट्र विधानसभा में मराठाओं को सरकारी नौकरी और शिक्षा संस्थानों में आरक्षण देने के लिए विधेयक पारित किया गया। इसके तहत सरकारी नौकरियों और शिक्षा संस्थानों में महाराष्ट्र में मराठों को 16 प्रतिशत आरक्षण दिया गया था, जिससे प्रदेश में आरक्षण सुप्रीम कोर्ट की 50 प्रतिशत की सीमा से अधिक हो गया। जिसके बाद से लगातार मराठा समाज नाराज चल रहा है। इस मुद्दे को लेकर पुणे समेत कई शहरों ने शांतिपूर्ण प्रदर्शन हो चुके हैं। आज पहली बार इस मुद्दे को लेकर हिंसक प्रदर्शन हुआ है।
बॉम्बे हाई कोर्ट ने बरकरार रखी थी आरक्षण वैधता
सरकार के इस फैसले को बॉम्बे हाई कोर्ट में चैलेंज किया गया, लेकिन बॉम्बे हाई कोर्ट ने मराठा आरक्षण की वैधता को बरकरार रखा था। हालांकि, हाई कोर्ट ने राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिशों के अनुसार इसे रोजगार के मामले में 12% एवं शैक्षणिक संस्थानों में 13% से अधिक नहीं करने का आदेश दिया था।
फैसले को सुप्रीम कोर्ट में दी गई थी चुनौती
बॉम्बे हाई कोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी, जिसमें कहा गया था कि ये फैसला इंदिरा साहनी मामले का उल्लंघन करता है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के अनुसार आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत तय की गई है। अपने फैसले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा था कि राज्य विशेष परिस्थितियों में 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण दे सकते हैं।
मराठा आरक्षण: कब क्या हुआ?
- पहली बार मराठा आरक्षण की मांग 1980 के दशक में हुई।
- एनसीपी पहली पार्टी थी, जिसने 2009 के अपने चुनावी घोषणा पत्र में मराठाओं को आरक्षण देने का वादा किया था।
- जुलाई 2014 में कांग्रेस-एनसीपी सरकार एक अध्यादेश लेकर आई, जिसमें मराठों को 16 प्रतिशत आरक्षण की बात थी, लेकिन ये वैधानिक रूप सही नहीं था।
- दिसंबर 2014 में बीजेपी सरकार आरक्षण के लिए एक विधेयक लेकर आई।
- नवंबर 2018 में मराठों द्वारा बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किए गए।
- इसके बाद राज्य विधानसभा में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा वर्ग अधिनियम 2018 पारित किया गया, जिसमें मराठाओं को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में 16 प्रतिशत आरक्षण देने की बात थी।