सुप्रीम कोर्ट का दिल्ली पुलिस में सिपाही भर्ती के मामले को लेकर अहम फैसला, कही यह बात

 सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक अहम फैसले कहा कि युवा और ग्रामीण पृष्ठभूमि का होने के आधार पर आपराधिक व्यवहार की माफी नहीं हो सकती। शीर्ष अदालत ने दिल्ली पुलिस आयुक्त की याचिका स्वीकार करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट और कैट (केंद्रीय प्रशासनिक पंचाट) के उस आदेश को रद कर दिया है, जिसमें आपराधिक मुकदमे होने के बावजूद कुछ आवेदनकर्ताओं को नियुक्ति देने पर विचार करने को कहा गया था। यह मामला 2009 के दिल्ली पुलिस में सिपाही भर्ती का था, जिसमें चार आवेदकों को उनके खिलाफ आपराधिक मामले होने के कारण नियुक्ति नहीं दी गई थी और उनका मामला स्क्रीनिंग कमेटी को भेज दिया गया था।

युवा और ग्रामीण पृष्टिभूमि आपराधिक व्यवहार की माफी का आधार नहीं

स्क्रीनिंग कमेटी का फैसला भी उनके खिलाफ था। कैट और हाई कोर्ट ने आवेदनकर्ताओं की याचिका स्वीकार करते हुए स्क्रीनिंग कमेटी का आदेश रद कर दिया था जिसके खिलाफ दिल्ली पुलिस आयुक्त ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल की थी। न्यायमूर्ति केएम जोसेफ और एस रविंद्र भट की पीठ ने दिल्ली पुलिस की अपील स्वीकार करते हुए कहा कि कोर्ट न्यायिक समीक्षा के दौरान किसी सरकारी पद के आवेदक की उपयुक्तता के बारे में अपनी राय नहीं दे सकता। मामले में सरकारी नियोक्ता के दुर्भावनावश या बिना सोचे समझे अथवा गैरकानूनी काम करने के सबूत नहीं होने पर भी कोर्ट द्वारा इस बात की गहन पड़ताल किया जाना कि आवेदक को क्यों नहीं शामिल किया गया, मान्य नहीं है।शीर्ष अदालत ने कहा कि इस निर्णय से कोर्ट द्वारा किसी व्यक्ति की नियुक्ति के कार्यपालिका के क्षेत्राधिकार में दखल देने का संदेह होता है। इस बारे में कोर्ट ने एमवी थिम्मैया बनाम यूपीएससी के एक पूर्व फैसले का भी जिक्र किया है। शीर्ष अदालत ने कहा कि सरकारी सेवा भी अन्य सेवाओं की तरह होती हैं, जिसमे नियोक्ता को यह तय करने का अधिकार होता है कि वह किसे सेवा में लेगा। इसके योग्यता मानक के सिद्धांत तय होते हैं। न्यायिक समीक्षा में यह सुनिश्चित किया जाता है कि ये मानक निष्पक्ष और भेदभाव रहित हों और उनका निष्पक्षता से बिना किसी भेदभाव के अनुपालन किया गया हो।

हालांकि आवेदक की उपयुक्तता बिल्कुल भिन्न चीज है, सरकारी नियोक्ता की पसंद सबसे ऊपर होती है जबतक कि प्रक्रिया गैर कानूनी या पक्षपाती न हो। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट का आदेश आवेदनकर्ताओं की युवावस्था और उनके छोटे मोटे अपराधों की सामान्य स्वीकार्यता की ओर इशारा करता प्रतीत होता है। हाई कोर्ट के आदेश के मुताबिक एक व्यापक नजरिया पेश होता है कि उनकी युवावस्था यानी उम्र और ग्रामीण पृष्ठभूमि को देखते हुए ऐसे छोटे मोटे दु‌र्व्यवहारों को गंभीरता से नहीं लिया जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सिपाही भर्ती मामले में कैट और हाई कोर्ट के फैसले को किया रद

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसका मानना है कि अपराध करने वालों के व्यवहार को सामान्यीकरण करते हुए माफी देना न्यायिक फैसलों में नहीं दिखना चाहिए और इससे बचना चाहिए। अदालत ने कहा कि ग्रामीण पृष्ठभूमि में कुछ निश्चित तरह के अपराध जैसे महिलाओं से छेड़छाड़ या जबरदस्ती कहीं प्रवेश करना अथवा मारपीट, हमला, चोट पहुंचाना, जाति आधारित या बड़प्पन की सोच आधारित व्यवहार भी हो सकते हैं। संबंधित सरकारी नियोक्ता को भर्ती के दौरान अपने अधिकारियों के जरिये प्रत्येक मामले की जांच पड़ताल करनी चाहिए। विशेषतौर पर पुलिस बल में भर्ती में, जिसकी जिम्मेदारी कानून व्यवस्था बनाए रखना और कानूनी विहीनता पर रोक लगाना है जिससे लोगों में भरोसा कायम हो।

Leave a Reply

Your email address will not be published.