प्रेस और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की पड़ताल… पत्रकार सुरक्षा विधेयक’ पारित होने के बावजूद जमीन पर पत्रकार झूठे मामलों के शिकार

सरकारी आश्वासनों और ‘पत्रकार सुरक्षा विधेयक’ पारित होने के बावजूद जमीन पर पत्रकार झूठे मामलों के शिकार हो ही रहे हैं। अकेले सरगुजा डिविजन, जिसमें छह जिले आते हैं, २२ पत्रकारों को रिपोर्टिंग के कारण गिरफ्तारी या मामले दर्ज होने की कार्रवाई झेलनी पड़ी है।

रिपोर्ट के अनुसार, इंटरनेट बंदी आम बात है, जबकि यह लोगों की जिंदगियों को बुरी तरह प्रभावित करती है। अनुराधा भसीन मामले में सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का उल्लंघन करते हुए यह बंदी की जाती है। केवल राजस्थान में ७२ बार इंटरनेट बंदी की गई है, जिनमें अधिकांश विरोध प्रदर्शनों पर अंकुश के लिए की गई है।

मिजोरम में सूचना तक पहुंच बाधित है और पत्रकारों को खासकर सीमाई इलाकों में सरकार और सीमा सुरक्षा बल की तरफ से कई पाबंदियों का सामना करना पड़ता है। पत्रकारों के साथ सूचना अधिकार कार्यकर्ताओं को भी कातिलाना हमलों का सामना करना पड़ा है। तेलंगाना में एक सूचना अधिकार कार्यकर्ता की हत्या कर लाश पानी से भरी खदान में फेंक दी गई।

वैसे तो देश भर में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में लगातार गिरावट आ रही है। रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स के इंडेक्स के अनुसार, भारत १६१वें क्रमांक पर और कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स के ग्लोबल इम्प्यूनिटी इंडेक्स में ११ वें स्थान पर है। दूसरी तरफ हेट स्पीच को खुली छूट है (उदाहरण दिसंबर २०२०-जनवरी २०२१ में मध्य प्रदेश के उज्जैन, मंदसौर और इंदौर जिलों में सांप्रदायिक भाषणों और झड़पों की लहर)।

जबकि पत्रकारों के अलावा कलाकारों, शिक्षाविदों, स्टैंड अप कॉमेडियनों, लेखकों, फिल्मकारों, नागरिकों और बुद्धिजीवियों को, जो सोशल मीडिया या कार्यक्रमों में अपनी बात रखना चाहते हैं, उन्हें मुकदमों से लेकर गिरफ्तारियों का सामना करना पड़ता है।

चुनावों की पूर्व संध्या पर यानी छह नवंबर को जारी रिपोर्ट ‘फ्री स्पीच इन स्टेट्स: बिट्वीन इलेक्टोरल रेटोरिक एंड ग्राउंड रियल्टी’ पिछले पांच वर्षों में इन प्रदेशों में पत्रकारों, सूचना अधिकार कार्यकर्ताओं की हत्याओं, उन पर हुए हमलों, उनकी गिरफ्तारियों का ब्यौरा देती है।

रिपोर्ट के अनुसार, सेंसरशिप तरह-तरह से लागू थी या तो सरकारी नीति के रूप में या फिर कानूनी डंडे से और पत्रकारों पर राजद्रोह से लेकर मानहानि तक, वैमनस्य पैâलाने आदि के मामले दर्ज किए गए और कई बार थोक में विभिन्न थानों में एफआईआर दर्ज किए गए।

उदाहरण के लिए मध्य प्रदेश के गुना और शिवपुरी में सात एफआईआर दर्ज कर रिपोर्टर जालम सिंह की गिरफ्तारी की गई और वह दो महीने से अधिक जेल में हैं। रिपोर्ट के अनुसार, ऐसे मामलों का पत्रकारिता पर भयावह प्रभाव पड़ता है और ऐसे दमन से एक ओर जहां पत्रकार आप ही खुद को सेंसर करने लगते हैं, दूसरी तरफ शासन-प्रशासन से ऐसे कोई सवाल नहीं पूछे जाते, जो पत्रकारिता की जान होते हैं। इसकी परिणिती जबरन चुप्पी में होती है।

गीता सेषु, लक्ष्मी मूर्ति, मालिनी सुब्रह्मण्यम और सरिता राममूर्ति की तैयार रिपोर्ट के अनुसार इस दौरान आई कोविड-१९ महामारी में किए अभूतपूर्व राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन से भी मीडिया प्रभावित हुआ। मध्य प्रदेश के ९५ फीसदी जिलों में अखबारों का प्रकाशन ठप हो गया था। महामारी की खबरें कवर करने के लिए पत्रकारों को इस दौरान भी बहुत कुछ झेलना पड़ा।

उदाहरण के लिए मई २०२० में तेलंगाना के नारायणकुंड में लॉकडाउन नियमों का उल्लंघन कर ५०० समर्थकों के साथ एक विधायक के जन्मदिन की पार्टी की खबर देने को लेकर एक पत्रकार शनिगरपू परमेश्वर का घर ही बुलडोजर से ढहा दिया गया।
छत्तीसगढ़, जो गिने-चुने राज्यों में से था जहां महामारी में मारे गए पत्रकारों के परिवारों को पांच लाख का मुआवजा दिया गया, वहां रेत खनन और अन्य स्थानीय भ्रष्टाचार के मामलों की रिपोर्टिंग के लिए पत्रकारों पर कानूनी डंडा चलाया गया।

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