दुनिया की तीसरी बड़ी इकोनॉमी बनने की राह पर भारत, लेकिन 2050 तक चीन को नहीं पछाड़ पाएगा?

भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) दुनिया में सबसे तेजी से आगे बढ़ रही है. आईएमएफ हो, विश्व बैंक हो या फिर दुनियाभर की रेटिंग एजेंसियां, सभी ने देश की तारीफ की है. ऐसे में समझा जा सकता है कि भारत की बढ़ती आर्थिक शक्ति किस तरह से दुनिया में अपना परचम लहरा रही हैं.

2029 तक दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का अनुमान

इस साल ब्रिटेन को पीछे छोड़कर दुनिया की टॉप-5 अर्थव्यवस्थाओं में शामिल होने वाला भारत जल्द ही अमेरिका और चीन के बाद दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी बनने के लिए तैयार है. भारतीय स्टेट बैंक के एक रिसर्च पेपर के मुताबिक भारत 2027 तक जर्मनी को पीछे छोड़कर चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा, जबकि 2029 तक जापान से आगे निकलकर तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा. 

2047 तक विकसित राष्ट्र बनाने का टारगेट

दुनिया में सबसे तेजी से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था बनकर उभरे भारत के लिए अब एक आवाज ये भी उठने लगी है, कि क्या भारत चीन से भी आगे निकल जाएगा? खासकर, जबसे भारत ने 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने का टारगेट तय किया है, उसी समय से ये अनुमान लगाया जा रहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार कब चीन से ज्यादा हो जाएगा? अगर मौजूदा आंकड़ों के हिसाब से मुकाबले करें तो फिलहाल भारत की इकोनॉमी का आकार करीब साढ़े 3 ट्रिलियन डॉलर है. जबकि चीन की अर्थव्यवस्था साढ़े 17 ट्रिलियन डॉलर से भी ज्यादा है. 

चीन से आगे निकलने में लगेंगे 25 साल

गौरतलब है कि 2047 तक भारत का लक्ष्य 20 ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था बनने का है. हालांकि इसके लिए सालाना 7 से साढ़े 7 फीसदी की विकास दर की जरूरत होगी. ऐसे में भारत का चीन से आगे निकलना अगले 25 साल तक तो मुमकिन नजर नहीं आता है, क्योंकि तब तक चीन भी तरक्की करते हुए आज के मुकाबले कहीं बड़ी इकोनॉमी बन जाएगा.


कभी चीन-भारत में था मामूली अंतर
32 साल पहले यानी 1990 में भारत और चीन की अर्थव्यवस्था में मामूली अंतर था. लेकिन इसके बाद चीन ने आर्थिक तरक्की के एक्सप्रेस-वे पर ऐसी स्पीड पकड़ी कि आज उसकी जीडीपी भारत से 5.46 गुना बड़ी है. भारत में प्रति व्यक्ति आय जहां 2500 डॉलर के करीब है, वहीं चीन में ये 17,000 डॉलर के नजदीक है. 1991 से अबतक भारतीयों की आय महज 5 गुना बढ़ी है, जबकि इस दौरान चीन में प्रति व्यक्ति आय 24 गुना बढ़ गई है. 
ऐसे में भारत के लिए चीन के करीब पहुंचना और आर्थिक असमानता को दूर करते हुए लोगों की आय को बढ़ाना एक बहुत बड़ी चुनौती है. विश्व असमानता रिपोर्ट 2022 के मुताबिक 2021 में भारत के टॉप 10 फीसदी अमीरों के पास कुल राष्ट्रीय संपत्ति में 57 फीसदी हिस्सेदारी है. वहीं आबादी के आखिरी 50 परसेंट हिस्से के पास कुल राष्ट्रीय संपत्ति में महज 13 फीसदी हिस्सा है.
2050 के बाद भारत चीन से आगे निकल सकता है?
चीन के साथ सबसे बड़ी समस्या होने वाली है कि वो दुनिया का ऐसा पहला देश होगा जो अमीर होने से पहले बूढ़ा होगा. आने वाले दशक में चीन की आबादी डेढ़ अरब से कम होगी और फिर धीरे-धीरे अगले करीब 3 दशक में लगभग 1.3 अरब रह जाएगी. लेकिन इस जनसंख्या में 2050 तक ऐसे लोगों का आंकड़ा 70 फ़ीसदी होगा जो चीन में कामकाजी लोगों पर निर्भर रहेंगे.
 फिलहाल चीन में 35 प्रतिशत आबादी कामकाजी लोगों के सहारे रहती है. लेकिन इस आंकड़े के दोगुना होते ही चीन पर भारी दबाव पड़ेगा और स्वास्थ्य व्यवस्था सबसे ज्यादा प्रभावित होगी. लेकिन जैसे ही इन आंकड़ों के पैमानो पर भारत को मापा जाता है तो हालात अलग नजर आने लगते हैं. भारत की जनसंख्या 2050 तक 1.7 अरब होने का अनुमान है. ऐसे में यहां पर जनसंख्या तो दुनिया में सबसे ज्यादा होगी. लेकिन कामकाजी लोगों पर निर्भर आबाादी का आंकड़ा काफी कम होगा.

चीन से आगे निकलने के लिए भारत को क्या करना होगा?

वैसे तो भारत में फिलहाल भी युवा श्रमिकों की संख्या चीन के मुकाबले काफी ज्यादा है. लेकिन समस्या ये है कि भारतीय श्रमिक एजुकेशन और स्किल के मामले में चीन के श्रमिकों के मुकाबले कमतर साबित होते हैं. इसके अलावा मौजूदा दौर साइबर दक्षता का युग है जिसमें तकनीक का रोल श्रम के मुकाबले काफी ज्यादा है. ऐसे में टेक्नोलॉजी और इनोवेशन में माहिर चीनी, भारतीयों से इक्कीस साबित होते हैं. लेकिन अब भारत तकनीक के मामले में तेज तरक्की कर रहा है. ऐसे में अगर भारत का युवा श्रमबल तकनीक में भी एक्सपर्ट हो गया तो फिर चीन को भारत से तगड़ी चुनौती मिल सकती है.
PLI स्कीम्स के सहारे मजूबत होगी भारत की मैन्युफैक्चरिंग!
भारत और चीन ने ग्लोबलाइजेशन से जमकर फायदा उठाया है. लेकिन भारत और चीन की तरक्की में मूलभूत अंतर ये रहा है कि चीन ने मैन्युफैक्चरिंग, सप्लाई चेन और वैश्विक स्तर के बुनियादी ढांचे को तैयार किया. वहीं भारत की अभी तक की तरक्की में सर्विस सेक्टर का बड़ा हाथ रहा है. यही वजह है कि चीन वर्ल्ड फैक्ट्री बना गया तो भारत ‘दुनिया का बैक ऑफिस’ बनकर रह गया.
 
वैश्विक कंपनियां चीन में निर्माण करती रहीं हैं और भारत की अंग्रेजी बोलने वाली आबादी से बैक ऑफिस जैसे काम करवाती रही हैं. लेकिन अब जिस तरह से भारत ने Production Linked Incentive यानी PLI स्कीम्स को बढ़ावा देकर दुनिया की दिग्गज कंपनियों को भारत में निर्माण के लिए आकर्षित किया है उससे उम्मीद है कि सर्विस सेक्टर के साथ ही अब भारत का मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर भी अर्थव्यवस्था को बढ़ाने में मददगार होगा.
2023 होगा भारत का साल!
कोरोना काल के 2 साल भारत के लिए मायूसी भरे रहे हैं. 2019 और 2021 के बीच भारत में विदेशी निवेश का हिस्सा 3.4 फीसदी से घटकर 2.8 परसेंट रह गया. जबकि इस दौरान चीन में विदेशी निवेश 14.5 प्रतिशत से बढ़कर 20.3 फीसदी हो गया. लेकिन अब भारत की ग्रोथ स्टोरी जंप लगाने के लिए तैयार हैं.
वैश्विक मंदी के गहराते खतरे के बावजूद तमाम एजेंसियों ने भारत की विकास दर को मामूली घटाया है और इसे दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था करार दिया है. EY और CII के एक सर्वे में दावा किया गया है 71% MNCs भारत में विस्तार योजनाओं के तहत निवेश के लिए तैयार हैं. इससे समझा जा सकता है कि भारत की बढ़ती आर्थिक शक्ति किस तरह से दुनिया में अपना परचम लहरा रही हैं.

पश्चिमी देश चीन के मुकाबले भारत को खड़ा कर रहे हैं

अमेरिका के लिए कहा जाता है कि चीन की बढ़ती ताकत का मुकाबला करने के लिए भारत को आर्थिक शक्ति के तौर पर उभरने में मदद की जा रही है. पश्चिमी लोकतांत्रिक देशों के लिए भारत एक स्वाभाविक सहयोगी देश है. ऐसे में भारत में निवेश का बढ़ना और आर्थिक सुधार होना उनके लिए भी फायदेमंद है. लेकिन इसके लिए निवेश का आना जरुरी है जिससे भारत की विकास दर बढ़े. समस्या ये है कि फिलहाल भारत की आर्थिक नीतियां अमेरिका, यूरो जोन और जापानी निवेशकों को आकर्षित करने में नाकाम हैं
उभरती अर्थव्यवस्थाओं में भारत रहेगा सबसे आगे
फिलहाल भारत के लिए राहत की बात है कि 2030 तक भारत सभी उभरती अर्थव्यवस्थाओं में अव्वल होगा, जिनकी अगले एक दशक में कुल वैश्विक जीडीपी में आधी हिस्सेदारी होगी. महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते बढ़ी महंगाई ने ज्यादातर विकसित अर्थव्यवस्थाओं को पीछे धकेल दिया है और इनमें ग्रोथ की संभावना काफी कम है.

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