Oral Cancer Causes: क्या ख़राब ओरल हाइजीन से मुंह के कैंसर का ख़तरा बढ़ सकता है?

Oral Cancer Causes: जिस तरह हम अपनी सेहत का ख़्याल रखने के लिए अलर्ट रहते हैं, उसी तरह हमारे मुंह और दांतों को स्वस्थ रखने की भी ज़रूरत होती है। मुंह को साफ रखने और बीमारी से मुक्त रखने को ओरल हाइजीन कहा जाता है। दांतों को रोज़ाना ब्रश करना ही काफी नहीं है, आपका ओरल हाइजीन बना रहे इसके लिए सही तरीके से ब्रश करने के साथ फ्लॉसिंग, इंटरडेंटल ब्रश और ज़बान की सफाई करना भी ज़रूरी है। उससे आपके दांत तो स्वस्थ रहेंगे ही साथ ही उन्हें सपोर्ट देने वाले मसूड़े और हड्डी जैसे टिश्यूज़ को भी फायदा पहुंचता है।

हमारे देश में आज भी एक बड़ी आबादी ऐसी ही जो अपने दांतों को साफ करने के लिए टूथब्रश और टूथपेस्ट का इस्तेमाल नहीं करती है। कुछ लोग मिश्री, चार्कोल, मंजन, नमक और राख को उंगली पर लेकर दांतों को साफ करते हैं। कुछ अभी भी दातुन की छड़ी का उपयोग अपने दांत साफ करने के लिए करते हैं। सफाई की ये आदतें दांतों की सड़न जैसी दांतों की समस्याओं का कारण बनती हैं, जिससे कैविटी हो जाती है, पेरिएपिकल संक्रमण हो जाता है और गैर-महत्वपूर्ण दांत टूट जाते हैं। इसके अलावा अगर लंबे समय तक दांत ख़राब होते रहे तो ये कैंसर में भी बदल सकता है।

क्या दांतों का ख्याल न रखने से ओरल कैंसर हो सकता है?

मुंबई के मसीना हॉस्पिटल में कंसल्टेंट ओरल पॅथोलॉजिस्ट और माइक्रोबायोलॉजिस्ट, डॉ. अलेफिया बी. खंबाती का कहना है, ” दांतों से जुड़े इंफेक्शन की वजह से कई बार दांत टूट भी जाते हैं और ये नुकीले टूटे हुए दांत ओरल मुकोसा में जलन के साथ कैंसर का भी कारण बनते हैं। प्रम डिसीज़ या पीरियोडोनाइटिस भी मुंह से जुड़ी बीमारी है। ओरल प्लाक और कॅल्क्युलस जैसे कारक तीव्र सूजन और जलन का कारण बनते हैं। कुछ बैक्टीरिया जैसे हेलिकोबैक्टर पाइलोरी और पोर्फिरोमोनस जिंजिवलिस जो ओरल एपिथीलियम को उपनिवेशित करते हैं, ये कई तरह के कैंसर से जुड़े हुए हैं।”

“पीरियोडोनाइटिस के रोगियों की ओरल कैविटी में बैक्टीरियल प्रजातियां नाइट्रेट को नाइट्राइट में बदल देती हैं या एसिटेलडिहाइड का उत्पादन करती हैं जो सभी कार्सिनोजेनिक मेटाबोलाइट्स हैं। इसके अलावा, सिगरेट, बीड़ी, चबाने वाले तंबाकू सहित सभी तरह के तंबाकू मुंह के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं जैसे मुंह के ऊपर के हिस्से में सूजन, दांतों पर प्लाक और तारतार का बढ़ता, हड्डियों का नुकसान, मुंह के अंदर सफेद धब्बे, मसूड़ों की बीमारी, उपचार में देरी और मुंह के कैंसर का बढ़ता ख़तरा।”

“इसके अलावा, गुटखा खाना जिसमें मुख्य घटक बीटल नट या एरेका नट है, जिसे सुपारी भी कहा जाता है, इसके नियमित उपयोग से फाइब्रोब्लास्ट में परिवर्तन होता है और मुंह का खुलना प्रतिबंधित होता है, जो कि एक प्रीकैंसेरस कंडीशन है। एक अन्य कारण कैंडिडायसिस हो सकता है, जिसमें मुंह में फंगल ओवरग्रोथ हो जाती है।शोध में संकेत मिले हैं कि जिन लोगों के दांत और मसूड़ों की सेहत बेहद ख़राब होती है, उनमें ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (HPV) होने का ख़तरा होता है, जिससे मुंह और गले के कैंसर का जोखिम बढ़ता है।”

ओरल कैंसर के पीछे के कारण

मुंबई के ग्लोबल हॉस्पिटल में कंसल्टेंट – मेडिकल, हेमेटो-ऑन्कोलॉजी और स्टेम सेल ट्रांसप्लांट, डॉ. अक्षय शाह ने कहा, “ओरल स्क्वामोल्स सेल कार्सिनोमा (OSCC) भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे आम कैंसर में से है। तंबाकू, शराब के अलावा; शुद्ध मौखिक स्वच्छता को अक्सर OSCC के रोगियों में सह-अस्तित्व में देखा जाता है, हालांकि, एटियोपैथोजेनेसिस में इसकी भूमिका विवादास्पद है। सहायक कारण और तंत्र जिनके कारण ओरल कार्सिनोजेनेसिस होता है, वे इस प्रकार हैं:

– दांतों को रोज़ाना दो बार ब्रश न करना

– दांतों की सफाई के लिए इस्तेमाल किए जाने वाली चीज़ें

– क्रोनिक म्यूकोसल ट्रॉमा

– सुपारी

– डेंटिस्ट के पास कम जाना

– इम्यूनोकॉम्प्रोमाइज़्ड कंडीशन

– निम्न सामाजिक-आर्थिक स्थिति

– शिक्षा का निम्न स्तर

– तंबाकू और शराब

ऊपर दिए गए कारक माइक्रोबायोटा में परिवर्तन का कारण बनते हैं, पीरियोडोनाइटिस, पोर्फिरोमोनस जिंजिवलिस, दांतों की हानि, तंबाकू द्वारा नाइट्राइट से नाइट्रोसमाइन का निर्माण और अल्कोहॉल से एसिटलडिहाइड का निर्माण ओरल कैंसर के पैथोजेनेसिस में योगदान देता है। इसलिए, ख़राब ओरल हाइजीन ओरल कैंसर से दृढ़ता से जुड़ी हुई है।”

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