पालघर में मानसिक रूप से अस्वस्थ महिला से दुष्कर्म का आरोपी दोषी करार, कोर्ट ने सुनाई आजीवन कारावास की सजा

महाराष्ट्र के पालघर जिले की एक अदालत ने 2021 में मानसिक रूप से अस्वस्थ 40 वर्षीय महिला से दुष्कर्म के मामले में एक व्यक्ति को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है।

पालघर: पत्थरों में भगवान देखने वाले भारतीय, एक स्त्री में अपनी मां, बहन और बेटी को नहीं देख पा रहे हैं। वर्तमान समय में महिलाओं पर बढ़ रहे अत्याचार यह भारतीय संस्कृति का हिस्सा बिलकुल नहीं रहे हैं। हद तो तब हो जाती है जब ये वैशी दरिंदे छोटी बच्ची, वृद्धा और मानसिक रूप से अस्वस्थ महिला तक को नहीं छोड़ते। ऐसे ही एक घटना की शिकार महिला को 3 साल बाद कोर्ट ने न्याय दिलाया है। इससे महिला के मन के घाव तो पूरी तरह नहीं भरे जा सके लेकिन लोगों का न्यायपालिका पर का विश्वास मात्र और दृढ़ हो गया है।

महाराष्ट्र के पालघर जिले की एक अदालत ने 2021 में मानसिक रूप से अस्वस्थ 40 वर्षीय महिला से दुष्कर्म के मामले में एक व्यक्ति को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ए.वी. चौधरी-इनामदार ने मंगलवार को अपने आदेश में कहा कि अभियोजन पक्ष ने जिले के विक्रमगाड इलाके के निवासी 45 वर्षीय दशरथ मारूति के खिलाफ सभी आरोप साबित कर दिए।

दिसंबर 2021 का था मामला

अतिरिक्त लोक अभियोजक अरुण मसराम ने अदालत से कहा कि दिसंबर 2021 में पीड़िता मनोर इलाके में अपने घर में सो रही थी और उसकी मां काम के लिए बाहर गई हुई थी, तभी आरोपी वहां पहुंचा। मसराम ने कहा कि व्यक्ति ने बलात्कार कर धमकी दी कि अगर पीड़िता ने इस अपराध के बारे में किसी को बताया तो उसे गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।

साक्ष्य के आधार पर सुनाया फैसला

उन्होंने कहा कि अप्रैल 2022 में महिला के गर्भवती होने का पता चला, जिसके बाद उसकी मां की शिकायत पर मनोर पुलिस ने बलात्कार समेत विभिन्न आरोपों में प्राथमिकी दर्ज करके आरोपी को गिरफ्तार किया। अभियोजक ने बताया कि बाद में परीक्षण के दौरान पीड़िता के भ्रूण का डीएनए आरोपी के डीएनए से मेल खा गया और इस साक्ष्य को अदालत ने स्वीकार कर लिया।

भविष्य में न हों ऐसी घटनाएं

मसराम ने बताया कि आजीवन कारावास की सजा के साथ अदालत ने आरोपी पर 11,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया तथा निर्देश दिया कि यह राशि पीड़िता को मुआवजे के तौर पर दी जाए। उम्मीद है कि अदालत के इस फैसले के बाद अपराधियों में पुलिस का खौफ और न्यायपालिका पर का विश्वास बढ़ जाए और इस प्रकार की घटनाएं भविष्य में न हों।

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