पहले लोकसभा फिर राज्यसभा अब मंत्री पद, लगातार ‘बेइज्जती’ से नाराज छगन भुजबल पहुंचे नासिक, क्या छोड़ेंगे NCP?

Chhagan Bhujbal News: महाराष्ट्र में मंत्रिमंडल के विस्तार के बाद जहां नागपुर में विधानमंडल का सत्र चल रहा है तो वहीं दूसरी तरफ छगन भुजबल की नाराजगी ने राजनीति को गरमा दिया है। भुजबल ने……….

मुंबई: महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस की अगुवाई वाली महायुति सरकार के मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिलने के बाद राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के दिग्गज नेता छगन भुजबल नाराज हैं। मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किए जाने के बाद उन्होंने खुले तौर पर नाराजगी भी जताई थी। भुजबल ने कहा था कि ‘जहां नहीं चैना, वहां नहीं रहना।’ भुजबल नागपुर के सत्र को छोड़कर नासिक चले गए। उन्होंने कहा था कि वह समत परिषद के लोगों के साथ अपने समर्थकों से विचार करेंगे। भुजबल की खुली नाराजगी को बाद महाराष्ट्र के राजनीतिक हलकों में उनके अगले कदम को लेकर कयासबाजी शुरू हो गई है। इसमें अनुमान लगाया जा रहा है कि भुजबल क्या करेंगे?

क्या हैं भुजबल के पास विकल्प?
भुजबल की गिनती महाराष्ट्र में बड़े नेताओं में होती है। शिवसेना से राजनीति की शुरुआत करने वाले भुजबल शरद पवार को अपना मेंटर मानते हैं। राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि भले ही भुजबल नाराजगी दिखा रहे हैं लेकिन बहुत हद तक संभावना है कि वे राज्यसभा की सीट पर आखिर में मान जाएंगे। कुछ विश्लेषकों का कहना है कि भुजबल पार्टी में साइडलाइन किए जाने के बाद अजित पवार के खेमे वाली एनसीपी को छोड़ भी सकते हैं। भुजबल के कद का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब 2019 में महाविकास आघाड़ी की सरकार बनी थी तो शिवाजी पार्क में उद्धव ठाकरे के अलावा चार अन्य नेताओं ने शपथ ली थी। तब वह अविभाजित एनसीसी से दूसरे नेता थे। जो मंत्री बने थे।

जरांगे से लिया था मोर्चा
महाराष्ट्र में लोकसभा के चुनावों से पहले जब मराठा आंदोलन पीक पर था तब छगन भुजबल पहले नेता थे। जिन्होंने मनोज जरांगे पाटिल से मोर्चा लिया था। सूत्रों के अनुसार मंत्रिमंडल में स्थान नहीं मिलने से नाराज भुजबल ने समता परिषद की बैठक बुलाई है। समता परिषद राज्य के ओबीसी समुदाय के लिए काम करता है। ऐसा माना जा रहा है कि इसके बाद भुजबल अगले कदम के बारे में फैसला ले सकते हैं। यह पहला मौका नहीं है जब भुजबल को असहज स्थिति का सामना करना पड़ा है। लोकसभा चुनावों में उन्हें पहले नासिक से लड़ने के लिए कहा गया था लेकिन जब कई हफ्ते तक उनके टिकट का ऐलान नहीं हुआ था तो भुजबल ने खुद मना किया थ। इसके बाद जब पार्टी ने अजित पवार की पत्नी सुनेत्रा पवार को राज्यसभा भेजा था। तब भुजबल की नाराजगी सामने आई थी। उन्होंने अपने दिल का दुख बयां किया था।

भुजबल के साथ कौन कर रहा है खेल?
भुजबल का कहना है कि जब वह राज्यसभा जाना चाहते थे तब पार्टी ने उन्हें नहीं भेजा। भुजबल ने यह प्रतिक्रिया उस सवाल पर दी। जब उनसे पूछा गया कि क्या पार्टी ने उन्हें राज्यसभा की सीट ऑफर की है। भुजबल ने आगे कहा कि अब मैं विधानसभा चुनाव लड़कर जीता हूं। अब राज्यसभा जाना और विधानसभा से इस्तीफा देना ठीक नहीं होगा। यह वहां के लोगों के साथ धोखा होगा। भुजबल येवला से जीते हैं। महायुति के पहले कार्यकाल में सत्तापक्ष से पहले नेता थे जिन्होंने जरांगे का विरोध किया था। भुजबल का कहना है कि जिस तरह से उनका अपमान हुआ। उससे वह आहत हैं। इसके बाद उन्होंने कहा कि जहां नहीं चैना, वहां नहीं रहना।

ओबीसी वोटों को किया लामबंद
भुजबल के समर्थकों का कहना है कि उन्होंने महायुति के पक्ष में ओबीसी वोटों को लामबंद करने में बड़ी भूमिका निभाई थी। शरद पवार ने जब कांग्रेस से अलग होकर एनसीपी बनाई थी तब उन्होंने भुजबल को प्रदेश अध्यक्ष बनाया था। ऐसे में यह सवाल भी खड़ा हो रहा है कि भुजबल के साथ खेला क्या एनसीपी के अंदर हो रहा है या फिर महायुति में कोई उनका दुश्मन है जो अब उनको निपटाने पर तुल गया है। भुजबल राज्य में चार दशक से सक्रिय हैं। वे उप मुख्यमंत्री के साथ गृह मंत्री भी रह चुके हैं।

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