न्यायालयों में कुल ५० लाख, ७६ हजार से अधिक मामले प्रलंबित…

मुंबई : कानून के शासन में लोगों को न्यायालय से न्याय की अपेक्षा रहती है। इसके लिए वे न्यायालय में अपने न्याय के अधिकार के साथ पहुंचते हैं, लेकिन राज्य सरकार की नाकामियों और निर्णय लेने की अक्षमता के चलते न्यायालय से न्याय की आस लगाए लोगों के साथ अन्याय हो रहा है। जी हां, राज्य न्यायालय में कर्मचारियों के अभाव में मामलों की सुनवाई लटक जा रही है। राज्य के जिला न्यायालयों में कुल ५० लाख, ७६ हजार से अधिक मामले प्रलंबित हैं।

आश्चर्य तो यह है कि देश की आर्थिक नगरी और आधुनिक शहर मुंबई में सबसे अधिक मामले न्यायालय में प्रलंबित हैं। जबकि आदिवासी व नक्सल प्रभावित गढ़चिरौली जिले में सबसे कम मामले न्यायालय में प्रलंबित हैं। यह जानकारी एक आरटीआई के माध्यम से मिली है।

मुंबई हाई कोर्ट से प्राप्त जानकारी के अनुसार ३१ जुलाई २०२३ तक राज्य की जिला अदालतों में ५०,७३,७२६ मामले प्रलंबित थे। न्यायाधीशों की कमी के चलते न्यायपालिका पर दबाव बढ़ रहा है। जिला न्यायालयों में न्यायाधीशों के ४३१ स्वीकृत पदों में से ४७ रिक्त हैं। यह कुल संख्या का करीब १० प्रतिशत है।

इनमें प्रमुख मामलों में से ३४,६६,४७७ मामले आपराधिक प्रवृति के हैं, जबकि १६,०७,२४९ दीवानी मामले सभी जिलों में प्रलंबित हैं। सबसे अधिक ८,३९,८४९ लंबित मामलों के साथ मुंबई शहर राज्य में सबसे आगे है। इसमें ५,८७,८८५ आपराधिक और २,५१,९६४ दीवानी मामले शामिल हैं।

पुणे में ६,२१,१६३ मामले प्रलंबित हैं। यह दूसरा सबसे बड़ा प्रलंबित मामलों वाला जिला है। ४,२७,४५२ लंबित मामलों के साथ ठाणे तीसरे स्थान पर है। इसके विपरीत गढ़चिरौली जिले में सबसे कम केवल १७,४८१ मामले प्रलंबित हैं। द यंग व्हिसलब्लोअर्स फाउंडेशन के कार्यकर्ता जितेंद्र घाडगे ने कहा कि जिला अदालत की वेबसाइटों पर पोस्ट की गई जानकारी के अनुसार आपराधिक मामलों को छह महीने के भीतर हल किए जाने की गाइडलाइन है, जबकि अन्य मामलों को तीन साल के भीतर हल किया जाना चाहिए।

अफसोस की बात तो यह है कि ये मामले वास्तव में कई वर्षों तक खिंचते रहते हैं। आज के दौर में केवल अमीरों को ही न्याय मिल सकता है, कई लोग न्यायिक प्रक्रिया का उपयोग अपने विरोधियों को परेशान करने या डराने के लिए कर रहे हैं। झूठे मामले या गलत हलफनामा दायर करने वाले व्यक्तियों को ज्यादा सजा नहीं मिलती है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है।

आंकड़े महाराष्ट्र में निचली न्यायपालिका पर बढ़ रहे भारी बोझ को दर्शा रहे हैं। इससे न्याय की समयबद्धता और लोगों के मौलिक अधिकारों को खतरा मालूम पड़ता है। निचली अदालतों में बढ़ते बैकलॉग के कारण मामले लंबे समय तक प्रलंबित रहते हैं, जिससे लाखों व्यक्तियों और उनके परिवारों को न्याय मिलना मुश्किल हो जाता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published.