गैंगरेप के आरोपियों को क्लीन चिट से नाराज बॉम्बे हाई कोर्ट… ‘मुंबई पुलिस इतनी असंवेदनशील कैसे हो सकती है’,
मुंबई: गैंगरेप जैसे गंभीर आरोपों का सामना कर रहे आरोपियों को क्लीन चिट देने से स्तब्ध बॉम्बे हाई कोर्ट ने मुंबई पुलिस कमिश्नर को आईपीएस कैडर के अधिकारी को नियुक्त करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि यह अधिकारी न सिर्फ केस की जांच को आगे बढ़ाएगा, बल्कि पूर्व जांच अधिकारी की भूमिका की भी जांच करेगा।
जांच में बरती गई लापरवाही से नाराज कोर्ट ने कहा कि पुलिस कितनी असंवेदनशील हो सकती है, मौजूदा मामला इसका आदर्श उदाहरण है। कोर्ट ने रजिस्ट्रार (न्यायिक) को इस आदेश की प्रति राज्य पुलिस महानिदेशक व राज्य महिला आयोग अध्यक्ष को भेजने का निर्देश दिया है, ताकि वे सुधार के लिए जरूरी कदम उठाएं। अक्सर 376 के ऐसे मामले सामने आ रहे हैं, जिसमें पुलिस पुलिस बिना सोचे-समझे फाइनल रिपोर्ट दायर कर देती है। कोर्ट अब इस मामले में 25 अगस्त को सुनवाई करेगी।
पीड़िता को धमकी देकर आरोपियों ने किया गैंग रेप
बता दें कि पीड़िता की आपत्तिजनक तस्वीरों को सर्कुलेट करने की धमकी देकर यौन शोषण करने एवं पीड़िता के भाई से 10 लाख रुपये मांगने के मामले में चार आरोपियों के खिलाफ 31 दिसंबर 2021 को निर्मल नगर पुलिस स्टेशन में आईपीसी की धारा 376-डी, 385, 420 और 34 के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी।
इसमें से एक आरोपी ने पीड़िता की आपत्तिजनक तस्वीरों को उसके भावी पति को दिखा दिया, जिससे उसकी शादी टूट गई। आरोपियों ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर केस रद्द करने की मांग की। आरोपियों के मुताबिक, पीड़िता ने केस रद्द करने के लिए अपनी सहमति दिखाई है। हालांकि कोर्ट ने कहा कि इसके संकेत मिल रहे हैं कि आरोपियों ने पीड़िता को धमका कर और दबाव बनाकर उसकी सहमति हासिल की है।
पुलिस की ‘बी समरी’ रिपोर्ट पर हैरानी
जस्टिस अजय गडकरी और जस्टिस शिवकुमार दिगे की बेंच ने कहा कि आईपीसी की धारा 376 डी (गैंग रेप) जैसे जघन्य अपराध की जांच बेहद गैर जिम्मेदाराना ढंग से की गई है। पुलिस अधिकारी ने हलफनामे में कहा है कि उसे इस मामले में कोई स्वतंत्र गवाह नहीं मिला है। ऐसा प्रतीत होता है कि पुलिस ने केस को खत्म करने के लिए ‘बी समरी’ रिपोर्ट दायर की है।
आम तौर पर किसी भी केस में यह रिपोर्ट तब दायर की जाती है, जब पुलिस को जांच करने पर आरोप झूठे व आधारहीन मिलते हैं या फिर आरोपी के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिलता है। बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि यौन उत्पीड़न व हमले में पीड़िता के पास कोई गवाह नहीं होता है। इसलिए पीड़ित महिला या नाबालिग की शिकायत को संदेह के लेंस से देखने की बजाय सहयोग के नजरिए से देखना चाहिए।