ट्रांसजेंडर को अतिरिक्त आरक्षण देना बेहद मुश्किल… महाराष्ट्र सरकार ने कोर्ट में दिया जवाब
मुंबई: राज्य सरकार ने बॉम्बे हाई कोर्ट को सूचित किया है कि ट्रांसजेंडर को नौकरी व शिक्षा में अतिरिक्त आरक्षण देना बेहद मुश्किल है। मंगलवार को राज्य के महाधिवक्ता बीरेंद्र सराफ ने हाई कोर्ट को यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि यदि ट्रांसजेंडर को अतिरिक्त आरक्षण दिया गया तो यह सुप्रीम कोर्ट की ओर से आरक्षण पर लगाई गई 50 प्रतिशत सीलिंग का उल्लंघन होगा।
इसलिए वर्तमान में ट्रांसजेंडर को अलग से आरक्षण (हॉरिजेंटल व वर्टिकल) देने की संभावना पर विचार करना मुश्किल है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने भी ट्रांसजेंडर को लेकर सुप्रीम कोर्ट की ओर से नैशनल लीगल सर्विस अथॉरिटी के मामले में जारी दिशा-निर्देशों को अमल में लाने की दिशा में कोई पहल नहीं की है। ऐसे में याचिकाकर्ता चाहें तो सुप्रीम कोर्ट में अपनी बात को रख सकते हैं। अगली सुनवाई 27 जुलाई को होगी।
हाई कोर्ट में विनायक कासिद की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई चल रही है। याचिका में कासिद ने मुख्य रूप से महाराष्ट्र स्टेट इलेक्ट्रिसिटी ट्रांसमिशन कंपनी लिमिटेड के विभिन्न पदों की भर्ती में ट्रांसजेंडर को आरक्षण देने की मांग की है। सुनवाई के दौरान कासिद के वकील क्रांति एलसी ने अदालत को बताया कि कर्नाटक में ट्रांसजेंडर को सभी श्रेणियों में (सभी जातियों के तहत) एक प्रतिशत का अतिरिक्त आरक्षण दिया गया है। ट्रांसजेंडर के आरक्षण से जुड़ी कर्नाटक की यह नीति महाराष्ट्र सरकार को भी अपनानी चाहिए।
गौरतलब है कि मार्च 2023 में हुई इस याचिका पर सुनवाई के बाद राज्य सरकार ने ट्रांसजेंडर के लिए सरकारी नौकरी में भर्ती के लिए स्त्री व पुरुष के अलावा एक तीसरी कैटगरी बनाई थी। यही नहीं, सरकारी नौकरी में ट्रांसजेंडर की नियुक्ति व उनसे जुड़े सभी पहलूओं पर विचार करने के लिए एक 14 सदस्यीय कमेटी भी बनाई थी।
पिछली सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सरकार की इस कमेटी को ट्रांसजेंडर के आरक्षण के मुद्दे पर विचार करने को कहा था। मंगलवार को कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश नितीन जमादार व न्यायमूर्ति एसवी मारने की खंडपीठ ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद कहा कि हम चाहते हैं कि पहले विशेषज्ञों की कमेटी इस पूरे मुद्दे पर विचार करे। फिलहाल याचिका पर सुनवाई को स्थगित किया जाता है। अब 27 जुलाई को इस याचिका पर अगली सुनवाई होगी।