मेडिकल, दवा कंपनी और डॉक्टरों के बीच की सांठगांठ… “यह रिश्ता क्या कहलाता है”

पालघर : आप ने नोटिस किया होगा कि कई हॉस्पिटलों के खुद के मेडिकल होते है,जिनके नही उनका भी एक फिक्स मेडिकल होता है,सेटिंग इतना तगड़ा होता है कि कुछ दवाइयां ऐसी लिखकर देंगे कि उनके निर्धारित मेडिकल पर ही आपको मिलेगी । यह बात सिर्फ मेडिकल तक ही सीमित नही बल्कि लेब टेस्टिंग व एक्सरे, सोनोग्राफी समेत अन्य जांच के भी उनके निर्धारित स्थान होते जहां हॉस्पिटल, डॉक्टर अपने व्यवसायिक फायदे से जुड़े होते है ।

वैसे यह एक क्षेत्र की ही नही बल्कि राष्ट्रीय समस्या बनी हुई है । दवा के रिटेल-थोक विक्रेता, डॉक्टरों और कंपनियों का ऐसा गठजोड़ है कि दवा बाजार तरक्की की सीढ़ियां चढ़ रहा है। हाल यह है कि शिखर पर पहुंचने के लिए बीमारों की जेब से धन निकाल कर बंदरबांट किया जा रहा है।

मेडिकल बाजार में अंकुश न होने के कारण मनमानी ऐसी है कि जो साल्ट नौ रुपये में 10 गोली मिल जाती है, उसे नब्बे रुपये में ब्रांडेड का टैग देकर बेचा रहा है। लगातार बढ़ रहे इस बाजार का तिलिस्म ऐसा है कि इस पर न तो सरकार अंकुश लगा पाई और ना ही अधिकारी। अंधेर तो यह है कि जब अफसर भी बीमार होते हैं तो उन्हें भी ब्रांडेड दवा ही खरीदनी पड़ती है।

कोरोना काल मे तो जगजाहिर हुआ यह का काला सच

डॉक्टरों को दवा कंपनियों की तरफ से मिलने वाले उपहारों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका की सुनवाई केंद्र सरकार से जवाब भी मांगा था। दवाओं की बिक्री को लेकर कंपनियों और डॉक्टरों की गठजोड़ को लेकर उस याचिका में ऐसा दावा किया गया है जिसे सुनकर खुद जज भी हैरान हो गए थे। याचिका में कहा गया था कि डॉक्टर किसी खास दवा को प्रिस्क्राइब करने के लिए कंपनी डॉक्टरों को करोड़ों रुपए के उपहार देती है उदाहरण के तौर पर अक्सर बुखार में दी जाने वाली एक कंपनी की दवा की बिक्री बढ़ाने के लिए डॉक्टरों को 1 हजार करोड़ रुपये के उपहार दिए गए ताकि उनकी दवा का प्रमोशन हो।

इस याचिका में कहा गया है कि जो डॉक्टर उपहार लेकर दवा की सलाह देते हैं, उन्हें इसके लिए जिम्मेदार भी होना चाहिए। क्या डॉक्टर सिर्फ अपनी जेब गर्म करने के लिए जो मरीज उन्हें भगवान समझकर खुद को सुपुर्द कर देता है उसे पैसे की लालच में वो ही दवाई दी जाती है जिसकी उसको जरूरत है व उतनी ही दी जाती है जितनी आवश्यकता है या फिर मरीज की जगह कमीशन को महत्व दिया जाता है?

मरीजों के स्वास्थ्य से खिलवाड़

अगर इस तरह का काम किया जाता है तो ना केवल दवा के ओवर यूज के केस बढ़ेंगे बल्कि इससे मरीजों के स्वास्थ्य पर भी विपरीत असर पड़ सकते हैं। इस तरह के घोटालों से मार्केट में दवाओं की कीमत और बिना मतलब की दवाओं की भी समस्या पैदा होती है। दवा कंपनी और डॉक्टरों के बीच की सांठगांठ़ फार्मा कंपनियों द्वारा अपने उत्पादों की बिक्री बढ़ाने के लिए डॉक्टरों को रिश्वत और प्रलोभन के माध्यम से बढ़ती जा रही है।

चिकित्सा प्रतिनिधियों ने यह भी उद्धृत किया कि केवल 10-20% डॉक्टर ही एमसीआई आचार संहिता का पालन करते हैं, जबकि कुछ मामलों में डॉक्टर किसी उत्पाद को आगे बढ़ाने के लिए “प्रोत्साहन” की भी मांग करते हैं। न केवल एलोपैथी, बल्कि आयुर्वेदिक और होम्योपैथिक कंपनियों के चिकित्सा प्रतिनिधियों ने उच्च बिक्री लक्ष्यों को पूरा करने के लिए भारी दबाव में होने की बात कही है।

क्या डॉक्टर करते है आचार संहिता का पालन

डॉक्टरों के लिए मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया में एक आचार संहिता है जो उन्हें फार्मा कंपनियों से कोई उपहार, नकद, यात्रा सुविधाएं या आतिथ्य स्वीकार करने से रोकती है। हालांकि फार्मास्युटिकल कंपनियों के लिए एक स्वैच्छिक कोड है जिसे यूनिफॉर्म कोड ऑफ फार्मास्युटिकल मार्केटिंग प्रैक्टिस या यूसीएमपी के रूप में जाना जाता है, लेकिन विशेषज्ञों से यह बात भी सामने आई है कि प्रचलित कदाचार की जांच के लिए एक बहुत प्रभावी तंत्र नहीं है।

चिंताजनक बात यह है कि अनैतिक आचरण के दोषियों को दंडित करने के लिए कोई कानून नहीं है। नतीजा मरीज महंगी दवा खरीदने को मजबूर हैं। केंद्र सरकार अभी भी फार्मा कंपनियों के लिए एक समान मार्केटिंग प्रैक्टिस कोड लागू करने के 2015 के प्रस्ताव पर बैठी है, जिसमें कड़े दंड का प्रावधान है।

कैसे होगा इस समस्या से निवारण

इस साठगांठ की समस्या से निपटने के लिए नया कानून लाने की सख्त जरूरत है, जिसके तहत दवा कंपनियों को डॉक्टरों को ‘शोध, लेक्चरों, सफर और मनोरंजन के लिए दी जाने वाली राशि का खुलासा करना जरूरी होगा। एक ऐसी नैतिक संहिता की भी बात हो, जिसके तहत फार्मा कंपनियां डॉक्टरों को किसी भी तरह का उपहार, धन या दूसरी तरह के फायदे अपनी दवाइयों को बढ़ावा देने के लिए नही दे सकें और न ही वे ऐसी जगहों पर बैठकों या सम्मेलनों का आयोजन करें, जो मनोरंजन, खेल के आयोजनों या मौज मस्ती और अवकाश देने से जुड़ी हों।

अनैतिक तरीके अपनाने पर कड़ी सजा देने की जरूरत पर भी जोर हो। डॉक्टरों और फार्मा कंपनियों की इस अनैतिक साठगांठ को तोड़ने के लिए केवल कानून ही कारगर हो सकता है। दूसरी ओर जन औषधियों को बढ़ावा देने के साथ-साथ जागरूकता अभियान चलाए जाने की भी जरूरत है, जिससे मरीजों को उपचार के नाम पर न तो लूटा ही जा सके और न ही उनके स्वास्थ्य पर कुप्रभाव पड़े।

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