बच्चों पर अत्याचार… ४ महीने मासूम को बैठाया कक्षा से बाहर
मुंबई : देश में एक तरफ सरकार सर्व शिक्षा अभियान के तहत सभी लोगों को शिक्षित बनाने के लिए पानी की तरह पैसा बहा रही है तो वहीं शिक्षा के बढ़ते बाजारीकरण के कारण महंगी होती पढ़ाई अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा प्रदान करने की चाहत रखनेवाले अभिभावकों पर कहर बनकर टूट रही है। अंग्रेजी माध्यम और खासकर कॉन्वेंट स्कूलों में ही अच्छी शिक्षा के अभिभावकों में व्याप्त भ्रम को निजी स्कूल संचालक मनमानी करने के अवसर के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं।
माता-पिता पर दबाव बनाने के लिए स्कूल प्रशासन बच्चों पर इमोशनल अत्याचार कर रहा है। इसका उदाहरण सांताक्रूज-पूर्व स्थित एक कॉन्वेंट स्कूल में देखने को मिला। बता दें कि सातांक्रूज के एक कॉन्वेंट स्कूल में पढ़नेवाले १२ साल के एक मासूम को शिक्षकों ने एक दो दिन नहीं बल्कि पूरे चार महीने तक कक्षा में प्रवेश ही नहीं करने दिया।
उसे क्लास के बाहर बैठा कर दूसरे छात्रों के सामने अपमानित करने का अपराध किया गया। बच्चे का गुनाह ये था कि उसके गरीब मां-बाप उसकी फीस नहीं भर पाए थे। नतीजतन स्कूल प्रशासन के आदेश पर शिक्षक मासूम छात्र को क्लास में प्रवेश नहीं करने दे रहे थे।
इतना ही नहीं बच्चे को तिमाही परीक्षा (यूनिट टेस्ट) में भी नहीं बैठने दिया गया। स्कूल प्रशासन के इस पाप का खुलासा तब हुआ जब बच्चे के सब्र का बांध टूट गया और उसने रोते हुए अपनी व्यथा मां को बताई तो मां ने इसकी शिकायत पुलिस में दर्ज करा दी।
सांताक्रूज-पूर्व के वाकोला इलाके में स्थित उक्त कॉन्वेंट स्कूल में आठवीं कक्षा में पढ़नेवाले पीड़ित बच्चे की मां ने वाकोला पुलिस को बताया कि उसके पति तपेदिक के मरीज हैं, जिसकी वजह से एकतरफ वे काम करने में असमर्थ हैं तो वहीं दूसरी (बाकी पेज ४ पर) तरफ उनके इलाज के खर्च के कारण उनकी माली हालत खराब हो गई है और वे बच्चे की फीस के ७,५०० रुपए नहीं भर पाए।
पीड़ित परिवार ने शिकायत में आरोप लगाया है कि उनका दूसरा बच्चा भी उसी स्कूल में पढ़ता है। फीस का भुगतान न करने पर प्राइमरी वर्ग की अध्यापिका उसे भी अपमानित करती थीं और उसके साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार करती थीं। रिपोर्टों के अनुसार, पीड़ित महिला के चार बच्चे हैं जिनकी उम्र १३, १२, ११ और ६ साल है।