स्वास्थ्य व्यवस्था की हालत खराब… जनता त्रस्त!

मुंबई : कुपोषण, माता मृत्यु, बाल मृत्यु और सरकारी अस्पतालों में सेवा उपलब्ध न होने से राज्य की जनता त्रस्त है, जिसके कारण राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था की हालत खराब हो गई है। विश्व स्वास्थ्य सेवा की शर्तों के अनुसार, ४० लोगों पर एक बेड उपलब्ध होना चाहिए। लेकिन राज्य में ४,२६४ लोगों पर एक बेड उपलब्ध है, वहीं २ लाख ३४ हजार ६०१ लोगों पर एक अस्पताल है।

इससे यह साबित होता है कि प्रगतिशील महाराष्ट्र स्वास्थ्य के क्षेत्र में अप्रâीकी देशों से स्पर्धा कर रहा है। इसी प्रकार राज्य में स्वास्थ्य सेवा को पूरा करने के लिए स्वास्थ्य विभाग में ६७ हजार १७ पद मंजूर हैं, जिसमें से केवल ४८ हजार ९१५ पद भरे गए हैं। १९ हजार १०२ पद रिक्त है, यानी २८.०८ प्रतिशत पद रिक्त हैं।

रोगियों को समय पर उपचार मिले, जिससे उनका जीवन बचाया जा सके और शारीरिक हानि को रोका जा सके। इसके लिए राज्य में परिवहन व्यवस्था दर्जेदार हो और २४ घंटे सेवा उपलब्ध हो सके। इसके लिए स्वास्थ्य सेवा परिवहन विभाग की स्थापना की गई थी। आज भी इस विभाग के लिए राज्यभर में ५७१ पद मंजूर हैं, जिसमें से २७७ पद भरे गए हैं और २९४ पद आज भी रिक्त हैं। मतलब ५१.४१ प्रतिशत पद खाली पड़े हैं।

राज्य परिवहन सेवा के लिए कुल ६,१५३ वाहन हैं, जिसमें से ४,४४१ वाहन चालू स्थिति में हैं, तो १,८४२ वाहन बंद अवस्था में हैं। मतलब तकरीबन ३० प्रतिशत वाहन बंद हैं व ४६.८७ प्रतिशत पद रिक्त हैं। इस स्थिति में ईडी सरकार दर्जेदार सेवा उपलब्ध कराने का दावा वैâसे करती है? यह सवाल उपस्थित होता है।

इसी तरह पिछले तीन वर्ष में दुर्गम भागों में जहां ३ हजार ८७१ बालकों की मृत्यु हुई है, वहीं भ्रूण हत्या में भी इजाफा हुआ है। सितंबर २०२२ के अंत तक १० हजार ३७२ सोनोग्राफी केंद्रों का रजिस्ट्रेशन हुआ है और भ्रूण हत्या कानून का उल्लंघन करने वालों के विरुद्ध कुल ६१२ मामले न्यायालय में दाखिल किए गए हैं।

राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम योजना स्वास्थ्य विभाग की ओर से चलाई जाती है। स्कूल व आंगनवाड़ी के माध्यम से ६ वर्ष तक के बच्चों की वर्ष में दो बार उनके स्वास्थ्य की जांच करना, इस कार्यक्रम के तहत आवश्यक है। परंतु आदिवासी लोग रोजगार के लिए गांव-गांव, शहर-शहर में घूमते रहते हैं। र्इंट भट्ठी, गन्ना तोड़ने जैसे कामों के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित होते रहते हैं।

परिणामस्वरूप उनके बच्चे भी उनके साथ स्थानांतरित होते रहते हैं। इस कारण स्कूल व आंगनवाड़ी के माध्यम से राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के मार्फत होनेवाले छोटे बच्चों की स्वास्थ्य जांच नहीं हो पाती है, ऐसा दिखाई दे रहा है। इस तरफ राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम को अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। उक्त जानकारी बजट पर अध्ययन करने वाली संस्था समर्थन की ओर से दी गई है।

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