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भारत में पैकेज्ड वाटर का मार्केट 20,000 करोड़ रुपये से अधिक का है. इसमें से 60 फीसदी हिस्सा असंगठित है. बिस्लेरी की संगठित बाजार में हिस्सेदारी करीब 32 फीसदी है. यानी देश में हर तीसरा पानी बोतल बिसलेरी का बिकता है.
बिसलेरी कंपनी को बेचने की नौबत क्यों आई? बिसलेरी का इतिहास भारत में करीब 5 दशक पुराना है. भारत में बिसलेरी (Bisleri) को बोलतबंद पानी बेचने की इंडस्ट्री में पॉपुलर बनाने का श्रेय रमेश चौहान (Ramesh Chauhan) को जाता है. उन्होंने इस कंपनी का सौदा केवल 28 साल की उम्र में किया था. अब उनकी उम्र बढ़कर 82 साल हो चुकी है. दरअसल, रमेश चौहान से इस कंपनी को बनाने में जवानी से लेकर बुढ़ापे तक खपा दिया. उन्होंने महज 4 लाख रुपये में बिसलेरी कंपनी को खरीदा था, जो आज हजारों करोड़ की हो चुकी है. भारत में पैकेज्ड वाटर का मार्केट 20,000 करोड़ रुपये से अधिक का है. इसमें से 60 फीसदी हिस्सा असंगठित है. बिस्लेरी की संगठित बाजार में हिस्सेदारी करीब 32 फीसदी है. यानी देश में हर तीसरा पानी बोतल बिसलेरी का बिकता है. लेकिन अब रमेश चौहान (Ramesh Chauhan) ने बिसलेरी कंपनी को बेचने का फैसला किया है. आखिर क्या हो सकती है वजह? खुद रमेश चौहान ने बताई कि क्यों उन्होंने इस अंतरराष्ट्रीय ब्रॉन्ड को भारत में पॉपुलर करने के बाद अब बेचने का फैसला किया है. क्योंकि कंपनी मुनाफे में है, और कारोबार भी साल-दर-साल बढ़ रहा है. बढ़ती उम्र और खराब स्वास्थ्य ईटी की रिपोर्ट की मानें तो रमेश चौहान की उम्र 82 साल हो गई है, बढ़ती उम्र के साथ-साथ खराब स्वास्थ्य की वजह से उन्होंने इस कंपनी को बेचने को फैसला किया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि बिसलेरी को आगे बढ़ाने या विस्तार के अगले स्तर पर ले जाने के लिए चेयरमैन के पास कोई उत्तराधिकारी नहीं है.जयंती चौहान के बारे में क्या सच में कंपनी को कोई चलाने वाला है नहीं है? सबसे पहले रमेश चौहान के परिवार के बारे में जानते हैं. उनके बारे में जितनी जानकारी उपलब्ध है, उसके मुताबिक उनकी एक बेटी है, जिनका नाम जयंती चौहान (Jayanti Chauhan) हैं. इनकी उम्र 37 साल है. और ये बिसलेरी कंपनी की वाइस चेयरपर्सन हैं. कंपनी की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक जयंती के पिता और बिसलेरी के कर्ता-धर्ता रमेश चौहान ने अपनी बेटी को 24 की उम्र में ही कंपनी बड़ी जिम्मेदारी सौंप दी थी. शुरुआत में जयंती को दिल्ली ऑफिस की जिम्मेदारी दी गई थी. उसके बाद 2011 में मुंबई बिसलेरी कार्यालय का भी जिम्मा उन्हें सौंप दिया गया. उसके बाद ग्लोबल लेवल पर भी ब्रांड को बढ़ाने में जयंती की बड़ी भूमिका रही है. बेटी जयंती की कम दिलचस्पी भी वजह अब रिपोर्ट की मानें तो रमेश चौहान ने बिसलेरी को बेचने के पीछे कई कारणों में से एक कंपनी में बेटी जयंती की कम दिलचस्पी को भी बताया है. उनकी बेटी और बिसलेरी की वाइस चेयरपर्सन जयंती (Jayanti) इस कारोबार को लेकर बहुत उत्सुक नहीं हैं. जिसके चलते अब बिसलेरी को बेचने की तैयारी की जा रही है. यहां बता दें कि बिसलेरी के चेयरमैन और एमडी पद की जिम्मेदारी रमेश चौहान के कंधे पर है, वहीं उनकी पत्नी Zainab Chauhan कंपनी की डायरेक्टर हैं. रिपोर्ट के मुताबिक ‘बिसलेरी इंटरनेशनल’ के चेयरमैन रमेश चौहान ने बताया कि आगे चलकर किसी को तो इस कंपनी को संभालना ही होगा, इसलिए हम उचित रास्ता तलाश रहे हैं. उनकी बेटी को कारोबार संभालने में कम दिलचस्पी है. हालांकि उन्होंने कहा कि अभी केवल बातचीत चल रही है, डील पर मुहर नहीं लगी है. 7,000 करोड़ रुपये में हो सकता है सौदा मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक खरीदारों की दौड़ टाटा कंपनी से सबसे आगे है. ये सौदा 6,000-7,000 करोड़ रुपये का बताया जा रहा है. लेकिन रमेश चौहान फिलहाल इससे इनकार कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि अभी केवल बातचीत कई कंपनियों से चल रही है. बिसलेरी का मजबूत कारोबार वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के मुताबिक, देशभर में बिसलेरी के 122 से अधिक ऑपरेशनल प्लांट मौजूद हैं, जबकि पूरे भारत में लगभग 5,000 ट्रकों के साथ 4,500 से अधिक इसका डिस्ट्रीब्यूटर नेटवर्क है. 1969 में खरीदी गई थी Bisleri साल 1969 में कारोबारी घराने चौहान परिवार के नेतृत्व वाली पारले (Parle) ने बिसलेरी (इंडिया) लिमिटेड को खरीद लिया था. उस समय केवल 4 लाख रुपये में बिसलेरी कंपनी का सौदा हुआ था. 1995 में इसकी कमान रमेश जे चौहान के हाथों में आ गई. इसके बाद पैकेज्ड वाटर का कारोबार इस तेजी से दौड़ा कि अब बोतलबंद पानी की पहचान बन गया है.
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