किडनी मरीजों को दिल संबंधी समस्याएं दे सकता है प्रदूषण: स्टडी

प्रदूषण का सबसे बड़ा प्रभाव लोगों की सेहत पर पड़ता है। बच्चों, बुजुर्गों के लिए तो यह काफी नुकसानदायक है। नई शोध रिपोर्ट में सामने आया है कि किडनी मरीजों के लिए प्रदूषण का गंभीर स्तर काफी नुकसानदायक है। रिपोर्ट के अनुसार गुर्दे की बीमारी वाले लोगों में वायु प्रदूषण का हृदय संबंधी प्रभाव हानिकारक हो सकता है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि वायु प्रदूषण हृदय और गुर्दे की जटिलताओं में एक बड़ा कारक है, लेकिन इसे कार्डियोरेनल घटनाओं से जोड़ने वाले तंत्र को अच्छी तरह से समझा नहीं गया है।

ये आया शोध में

अमेरिका में केस वेस्टर्न रिजर्व यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं की एक टीम ने यह आंकलन करने की कोशिश की कि क्या गैलेक्टिन 3 स्तर (मायोकार्डियल फाइब्रोसिस) क्रोनिक किडनी रोग के साथ और बिना उच्च रक्तचाप वाले रोगियों में वायु प्रदूषण के जोखिम से जुड़ा है।

अध्ययन में प्रतिभागियों के सिस्टोलिक रक्तचाप स्तर के साथ PM 2.5 के एक्सपोजर का आंकलन किया गया। उन्हें वायु प्रदूषण के जोखिम और गैलेक्टिन 3 के रक्त स्तर के बीच कोई संबंध नहीं मिला।

हालांकि, जिन वयस्कों को उच्च रक्तचाप के अलावा क्रोनिक किडनी रोग (सीकेडी) था, उनमें वायु प्रदूषण का जोखिम समय के साथ गैलेक्टिन 3 के बढ़ते स्तर से जुड़ा था।

इस तरह होती है परेशानी

वायु प्रदूषण का सीधा संबंध लोगों में सीकेडी के साथ मायोकार्डियल फाइब्रोसिस से है। मायोकार्डियल फाइब्रोसिस तब होती है, जब दिल की फाइब्रोब्लास्ट नामक कोशिका कोलेजेनेस स्कार टिशू पैदा करने लगती हैं। इससे दिल की गति रुकने के साथ-साथ मौत होने की भी आशंका रहती है। तारिक ने कहा कि वायु प्रदूषण को कम करने का लाभ सीकेडी पीड़ितों को होगा, क्योंकि उनमें दिल की बीमारी की खतरा कम हो जाएगा।

ये दी गई सलाह

रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर एयर पॉल्यूशन को नियंत्रित किया जाए तो किडनी की वजह से होने वाली ह्दय संबंधी समस्याओं को कम किया जा सकता है।

प्रदूषण के चलते हर मिनट जा रही है 13 लोगों की जान, इस रिपोर्ट में हुआ बड़ा खुलासा

हवा में बढ़ते प्रदूषण के चलते पूरी दुनिया में हर मिनट औसतन 13 लोगों की जान जा रही है। ये खुलासा हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO ) की ओर से पेश की गई एक रिपोर्ट में कहा गया है। रिपोर्ट के मुताबिक पूरी दुनिया में जीवाश्म इंधन जलाए जाने से होने वाला वायु प्रदूषण लोगों की जान ले रहा है। वहीं प्रदूषण के चलते हो रहा जलवायु परिवर्तन मानव जाति के लिए सबसे बड़ा खतरा बन चुका है। जलवायु परिवर्तन के खतरों से कोई भी ऐसा नहीं है जिसकी सेहत पर असर नहीं होगा।

डब्लूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक लोगों की सेहत को ध्यान में रखते हुए प्रदूषण और क्लाइमेट चेंज के प्रभावों को कम करने के लिए ऊर्जा, ट्रांस्पोर्ट, पर्यावरण, फूड सिस्टम और वित्तीय क्षेत्र में बड़े पैमाने पर जरूरी बदलाव करने की जरूरत है। इनवायरमेंट, क्लाइमेट चेंज और हेल्थ के मामलों में डब्लूएचओ की निदेशक Dr Maria Neira के मुताबिक क्लाइमेट चेंज हमारे सामने सबसे बड़ी हेल्थ इमरजेंसी के तौर पर सामने आ रहा है। अगर वायु प्रदूषण के स्तर को WHO के दिशानिर्देशों के स्तर तक लाया जा सके तो वायु प्रदूषण से होने वाली वैश्विक मौतों की कुल संख्या में 80% की कमी आएगी। वहीं जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा देने वाली ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में भी कमी आएगी।

डब्ल्यूएचओ की सिफारिशों के मुताबिक अधिक पौष्टिक और पेड़-पौधों पर आधारित खाने-पीने की आदतों को अपनाने से वैश्विक उत्सर्जन को काफी कम किया जा सकता है। डब्लूएचओ के मुताबिक अधिक लचीली खाद्य प्रणाली अपना कर 2050 तक एक वर्ष में 5.1 मिलियन आहार से संबंधित मौतों से बच सकता है।

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