दुनिया में जानलेवा स्तर पर पहुंचा वायु प्रदूषण, भारत में खतरे की घंटी, जानें एक्सपर्ट व्यू
पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन पर मंथन कर रही है। ऐसे में भारत की ताजा स्थिति पर भी गौर करना जरूरी है। देश में लगातार बढ़ रहा वायु प्रदूषण कुछ वर्षों से भारत के लिए एक गंभीर समस्या है। जहरीली हवा न सिर्फ स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, बल्कि यह पर्यावरण के लिए एक चिंता का सबब है। भारत के लिए यह एक खतरे की घंटी है। हेल्थ इफेक्ट इंस्टीट्यूट के मुताबिक वर्ष 2015 में भारत में 10 लाख से ज्यादा असामयिक मौतों का कारण वायु प्रदुषण था। वर्ष 2019 में वायु प्रदूषण के चलते 18 फीसद मृत्यु हुई। इतना ही नहीं अब इसका प्रभाव देश की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ रहा है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस वर्ष अर्थव्यवस्था को जीडीपी का करीब 14 फीसद नुकसान उठाना पड़ा है। वायु प्रदूषण का गंभीर नकारात्मक प्रभाव विभिन्न क्षेत्रों पर पड़ा है, इसमें श्रम उत्पादकता और कृषि उत्पाद भी शामिल हैं। आइए जानते हैं कि देश में वायु प्रदूषण के ताजा हालात के बारे और क्या है इस पर विशेषज्ञ पर्यावरणविद विजय बघेल की राय।
इंडियन काउंसिल फार मेडिकल रिसर्च की चौंकाने वाली रिपोर्ट
इंडियन काउंसिल फार मेडिकल रिसर्च ने अपनी हालिया रिपोर्ट में बताया है कि भारत में साल 2019 में 16.7 लाख लोगों की मौत के लिए वायु प्रदूषण को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि घरेलू वायु प्रदूषण की वजह से होने वाली मौतों में 1990 से 2019 तक 64 फीसद की कमी आई है, लेकिन इसी बीच हवा में मौजूद प्रदूषण की वजह से होने वाली मौतों में 115 फीसद का इजाफा हुआ है। वायु प्रदूषण फेंफड़ों से जुड़ी बीमारियों के चालीस फीसद मामलों के लिए जिम्मेदार है। वहीं, इस्केमिक हार्ट डिजीज, स्ट्रोक, डायबिटीज और समय से पहले पैदा होने वाले नवजात बच्चों की मौत के लिए वायु प्रदूषण 60 फीसद तक जिम्मेदार है। इस रिपोर्ट में यह कहा गया है कि अगर समय रहते हम नहीं चेते तो वायु प्रदूषण से होने वाली मौतें, बीमारियां और आर्थिक नुकसान की वजह से भारत का साल 2024 तक पांच ट्रिलियन डालर की अर्थव्यवस्था बनने का सपना टूट सकता है।
खराब वायु गुणवत्ता वाले देशों की सूची में भारत तीसरे नंबर पर
1- पर्यावरणविद विजय बघेल (ग्रीन मैन) का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों में शहरीकरण, औद्योगिकीकरण और बढ़ती जनसंख्या जैसे विभिन्न कारकों ने भारत की वायु गुणवत्ता को तेजी से बिगाड़ा है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आइक्यू एयर की रिपार्ट के मुताबिक वर्ष 2020 में पूरे विश्व में सबसे खराब वायु गुणवत्ता वाले देशों की सूची में भारत तीसरे नंबर पर था। दुनिया के ज्यादा वायु प्रदूषित वाले 20 शहरों में 14 केवल उत्तर क्षेत्र के थे।
2- उन्होंने कहा कि औद्योगिकीकरण से होने वाले वायु प्रदूषण का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कोरोना महामारी के दौरान लाकडाउन में औद्योगिक कामकाज ठप होने की वजह से वायु प्रदूषण के स्तर में काफी गिरावट आई थी। इससे दुनिया को यह संदेश मजबूती से गया कि हमको अपने विकास और पर्यावरण में कहीं न कहीं संतुलन बनाने की जरूरत है। अब देश और दुनिया को एक नया विकास माडल बनाने की जरूरत है। इस पर सरकारों को गंभीरता से विचार करना होगा।
3- उन्होंने कहा कि निसंदेश सरकार ने वायु प्रदूषण से निपटने के लिए योजनाएं बनाई हैं। इसके लिए कई नियामक एजेंसियां और अन्य संस्थानों का गठन किया गया है। लेकिन समस्या इतनी जटिल हो चुकी है कि यह निदान नाकाफी है। उन्होंने कहा कि वर्तमान स्थिति के मद्देनजर देश में वायु गुणवत्ता को सुधारने के लिए बेहतर और ज्यादा प्रभावी तरीके के माडल अपनाना होगा। उन्होंने कहा घनी आबादी वाले शहरी क्षेत्रों में इससे निपटना एक बड़ी चुनौती है। वायु प्रदूषण की समस्या को खत्म करने के लिए निजी क्षेत्रों को आपस में और सरकार के साथ साझेदारी करने के लिए प्रेरित करना होगा।
4- उन्होंने कहा कि वायु प्रदूषण एक बड़ी चुनौती है। इससे निपटने के लिए सरकार को इस तरह की रणनीति तैयार करनी चाहिए जिससे प्रत्येक व्यक्ति इस दिशा में कार्य करने के लिए प्रेरित हो। इसके लिए सामूहिक संकल्प लेने की जरूरत है ताकि एक ऐसे भविष्य के लिए हम प्रतिबद्ध हो जहां सभी को साफ हवा मयस्सर हो सके। इसके लिए सरकार को वायु प्रदूषण की सटीक और सामयिक जानकारी मुहैया करना होगा।
5- उन्होंने कहा कि भारत में वायु प्रदूषण का खतरा कितना गंभीर है, इस बात का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि वर्ष 2019 में जितनी मौतें प्रदूषण की वजह से हुईं, उतनी मौतें सड़क दुर्घटनाओं, आत्महत्या और आतंकवाद जैसे कारणों को मिलाकर भी नहीं हुईं। उन्होंने कहा कि हमारे पास कठोर कदम उठाकर वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के सिवा कोई और विकल्प नहीं है।
6- उन्होंने कहा कि वायु प्रदूषण के खतरे को इस तरह से समझा जा सकता है कि आज दिल्ली में पीएम 2.5 सूचकांक 300 पर है तो दिल्ली में रहने वाले प्रति व्यक्ति ने 15 सिगरेट पीने के बराबर नुकसान झेला है। उन्होंने कहा कि 50 फीसद से ज्यादा मरीज नान स्मोकर हैं। इनमें महिलाओं की संख्या बढ़ रही है। यह इसी का दुष्परिणाम है।
जहरीली हवा में जी रहे हैं लोग
उत्तर भारत के अधिकतर राज्य वायु प्रदूषण की चपेट में हैं। दिल्ली से लेकर उत्तर प्रदेश और बिहार समेत भारत का एक बड़ा हिस्सा एक लंबे समय से वायु प्रदूषण की गिरफ्त में है। उन्होंने कहा कि अगर बारिश के महीनों को छोड़ दिया जाए तो देश के उत्तर भारत में निवास करने वाले लोग लगभग पूरे वर्ष प्रदूषण की मार झेलते हैं। उन्होंने कहा कि राजधानी दिल्ली से लेकर उत्तर प्रदेश के लखनऊ में रहने वाले लोग इस समय जिस हवा में सांस ले रहे हैं, वह स्वस्थ लोगों को भी बीमार बना सकती है और पहले से बीमार लोगों के लिए गंभीर खतरे पैदा कर सकती है। हाल में दिल्ली में बेहद बारीक प्रदूषक पीएम 2.5 का सूचकांक 462 था, जो कि 50 से भी कम होना चाहिए। ब्रिटेन की राजधानी लंदन में इसी पीएम 2.5 का स्तर 17 है, न्यूयार्क में 38 है, बर्लिन में 20 है, और बीजिंग में 59 है।