राहुल गांधी और ममता बनर्जी के बीच विपक्ष का चेहरा बनने की होड़, विपक्षी एकता में लग रहा पलीता!
बंगाल की सत्ता पर लगातार तीसरी बार काबिज होने के बाद से उत्साहित मुख्यमंत्री व तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी 2024 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हराने के लिए विपक्षी एकता पर जोर दे रही हैं। यही वजह है कि विधानसभा चुनाव में मिली जीत के महज दो माह बाद ही वह दिल्ली गईं और विपक्षी दलों को एकजुट करने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से लेकर अन्य क्षेत्रीय दलों के नेताओं के साथ बैठक की। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि आगामी लोकसभा चुनाव के लिए अभी से विपक्ष को लामबंद होना होगा। इसका असर संसद के मानसून सत्र में दिखाई दिया, जिसमें सभी विपक्षी दलों ने एकजुट होकर लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही को बाधित रखा।
पेगासस जासूसी और कृषि बिल के मुद्दे पर कांग्रेस के साथ तृणमूल और अन्य दलों ने एकजुटता दिखाई थी, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकल्प में विपक्ष का चेहरा कौन होगा, इसे लेकर अभी से कई नेताओं के मन में महत्वाकांक्षा जन्म ले चुकी है। तृणमूल ने तो ममता बनर्जी को राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष के चेहरे के रूप में पेश करना भी शुरू कर दिया है, जो विपक्षी एकता में पलीता लगाने को काफी है।
दरअसल, तृणमूल के मुखपत्र ‘जागो बांग्ला’ में पिछले शुक्रवार को एक लेख छपा, जिसमें कहा गया कि कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी सफल नहीं रहे और नरेन्द्र मोदी का एकमात्र विकल्प ममता बनर्जी ही हैं। लेख में पार्टी के लोकसभा सदस्य सुदीप बंद्योपाध्याय समेत कई वरिष्ठ नेताओं के बयान हैं। बंद दरवाजों के पीछे हुई तृणमूल की बैठक में नेताओं ने कहा कि विपक्ष के खेमे में कांग्रेस का होना जरूरी है, लेकिन राहुल गांधी कई मौकों के बाद भी नरेन्द्र मोदी के विकल्प के रूप में नहीं उभर पाए। तृणमूल ममता को मोदी के विकल्प के रूप में पेश करते हुए अभियान चलाएगी। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी अपने पुत्र राहुल को फिर से स्थापित करने में जुटी हुई हैं। गांधी परिवार के बेहद करीबी कांग्रेसी नेता उन्हें फिर से लांच करने के लिए जमीन तैयार कर रहे हैं।
ऐसे में तृणमूल द्वारा राहुल को विपक्ष का चेहरा मानने से इन्कार करने के बाद विपक्षी एकता की बात कहीं सिर्फ बात ही न रह जाए। सुदीप बंद्योपाध्याय ने कहा, ‘देश को एक विकल्प की जरूरत है। मैं लंबे समय से राहुल गांधी को जानता हूं, मगर यह कहने को मजबूर हूं कि वह नरेन्द्र मोदी के विकल्प की तरह उभरने में नाकाम रहे हैं। पूरा देश अब ममता बनर्जी को चाहता है। हम सभी विपक्षी दलों से बात करेंगे और ममता को विकल्प के तौर पर प्रोजेक्ट करेंगे।’ सुदीप का यह भी कहना है कि उनका यह आकलन पिछले माह के अनुभवों पर आधारित है। सुदीप का यह बयान हैरान करने वाला नहीं है।
राहुल गांधी पर इस तरह से निशाना साधे जाने को लेकर कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, ‘तृणमूल के मुखपत्र में जो छपा है, वह ठीक नहीं है। राहुल गांधी पर हमला अवांछित है। कांग्रेस सभी विपक्षी दलों और उनके नेतृत्व का सम्मान करती है और भाजपा के खिलाफ लड़ाई में उनके योगदान को स्वीकारती है। नेताओं को कमतर बताकर विपक्षी एकता नहीं हो सकती।’ वहीं लोकसभा में कांग्रेस के नेता और पार्टी के बंगाल अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि तृणमूल की ये बातें विपक्षी एकता को कमजोर करेगी।
दरअसल यह पहला मौका नहीं है, जब ममता बनर्जी ने राष्ट्रीय राजनीति में खुद को स्थापित करने की कोशिश की हैं। इससे पहले 2012 में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान प्रणव मुखर्जी के विरोध में तत्कालीन समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव के साथ मिलकर गैर-कांग्रेसी व गैर-भाजपा दलों को एकजुट करने की कोशिश की थी, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले भी कांग्रेस और भाजपा से इतर तीसरा मोर्चा गठित करने की कोशिश की थी।
इसके बाद 2019 के जनवरी को मोदी विरोधी करीब 25 दलों के नेताओं को ब्रिगेड परेड मैदान में बुलाकर एकजुट करने की बात कही थी, लेकिन सफलता नहीं मिली। अब जब तीसरी बार वह बंगाल में जीती हैं तो एक रणनीति के तहत ममता को मोदी के विकल्प के तौर पर पेश करने की तैयारी शुरू हो गई है। यह ऐसा प्रयास है जिसका नतीजा क्या होगा, यह भविष्य के गर्भ है।