India and Taliban: अनुच्‍छेद-370 के मामले में तालिबान ने पाक को दिया था झटका, भारत से बेहतर संबंध रखने की उनकी चाह कायम

अफगानिस्‍तान से अमेरिकी सैन्‍य वापसी के बाद दुनिया के अन्‍य मुल्‍कों के साथ तालिबान के रिश्‍तों पर एक बहस छिड़ गई है। तालिबान के साथ संबंधों को लेकर जहां कुछ देशों ने अपना नजरिया साफ कर दिया है तो अभी कुछ मौन साधे हुए हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि तालिबान को लेकर भारत की क्‍या रणनीति होगी। आखिर भविष्‍य में कैसे होंगे भारत तालिबान के रिश्‍ते। क्‍या होगी भारत की कूटनीति। भारत के हित में क्‍या होगा। चीन और पाकिस्‍तान की तालिबान से निकटता का भारत के संबंधों पर क्‍या होगा असर आदि सवालों पर प्रो. हर्ष पंत (आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन) की राय।

क्‍या भारत को बैकडोर डिप्‍लोमेसी करना चाहिए ?

इस सवाल के जवाब में प्रो. पंत ने कहा कि अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद भारत के ताजा रुख से यह पता चलता है कि वह तालिबान के साथ अब बैकडोर डिप्‍लोमेसी के पक्ष में नहीं है। उन्‍होंने कहा कि अमेरिकी सैनिकों की वापसी के साथ अफगानिस्‍तान का भविष्‍य अब पूरी तरह से तालिबान के हाथों में है। ऐसे में तालिबान को लेकर भारत को अपनी कूटनीति में बदलाव करना होगा। यह समय की मांग है। उन्‍होंने कहा कि तालिबान को लेकर भारत की रणनीति सफल रही है। अफगानिस्‍तान के मामले में भारत ने बहुत धैर्य से काम लिया है। यही वजह है कि तालिबान ने भारत को लेकर एक सकारात्‍मक रवैया अपनाया है। अफगानिस्तान में अपने निवेश और वहां से मध्य एशिया की पहुंच को बनाए रखने के लिए भारत को तालिबान से खुले तौर पर बातचीत का नया चैनल खोलना जरूरी था।

भारत को किस तरह की रणनीति अपनानी चाहिए ?

तालिबान के मामले में भारत को अभी बहुत जल्‍दबाजी नहीं करनी चाहिए। उन्‍होंने कहा कि जब तक तालिबान में सरकार का स्‍पष्‍ट स्‍वरूप सामने नहीं आ जाता तब तक वेट एंड वाच की स्थिति बेहतर है। उन्‍होंने कहा कि यह भारत की सोची-समझी रणनीति का हिस्‍सा है। पंत ने कहा कि तालिबान के साथ भारत का रिश्‍ता ‘एक हाथ दे और एक हाथ ले’ वाला है। तालिबान, भारत से व्‍यापार चाहता है। भारत भी यह चाहता है कि अफगानिस्‍तान की जमीन से भारत विरोधी गतिविधियों को विराम मिले। उन्‍होंने आगे कहा कि भारत को बहुत सावधानी के साथ तालिबान की कथनी और करनी का इंतजार करना होगा।

क्‍या तालिबान से रिश्‍तों के बीच क्‍या है बड़ी चुनौती ?

उन्‍होंने कहा कि अगर फायदे की बात की जाए तो अफगानिस्‍तान के साथ भारत को दोस्‍ताना संबंध रखना बेहतर होगा। इसकी बड़ी वजहें भी हैं। भारत ने अफगानिस्‍तान में बड़े पैमाने पर निवेश कर रखा है। दूसरे, अफगानिस्‍तान में बड़ी तादाद में भारतीय फंसे हुए हैं। तीसरे, कश्‍मीर घाटी में आतंकवादी सक्रियता को लेकर एक नया खतरा उत्‍पन्‍न हो गया है। उन्‍होंने जोर देकर कहा कि इस फायदे के लिए क्षेत्रीय समीकरणों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। उन्‍होंने कहा जिस तरह से पाकिस्‍तान और चीन तालिबान के निकट आ रहे हैं और अमेरिका ने अफगानिस्‍तान से अपना पल्‍ला छाड़ लिया है उससे भारत के समक्ष एक बड़ी चुनौती खड़ी हुई है।

अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद भारत-तालिबान रिश्‍तों को किस रूप में देखते हैं ?

उन्‍होंने कहा कि अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद तालिबान ने भारत को लेकर सकारात्‍मक बयान दिया है। इस बयान से ऐसा लगता है कि उसने भारत की चिंता को समझने की कोशिश की है। उसने भारत के साथ एक बेहतर रिश्‍ते बनाने के संकेत दिए हैं। अमेरिका ने जिस तरह अफगानिस्‍तान से वापसी की है, वह भारत के लिए एक बड़ा झटका है। ऐसे में भारत को यह समझना चाहिए कि उसे अफगानिस्‍तान में जो कुछ भी करना है, अकेले दम पर करना है। हाल में दोहा बैठक में भारत को नजरअंदाज किया गया। इस बैठक में अमेरिका, रूस, चीन और पाकिस्‍तान शामिल थे। ये सारे समीकरण यह बताते हैं कि भारत को अपने रास्‍ते खुद बनाने होंगे।

तालिबान का भारत के प्रति कैसा रुख रहेगा ?

प्रो. पंत ने कहा कि यह तो समय बताएगा कि भविष्‍य में तालिबान और भारत के बीच कैसे संबंध होंगे। लेकिन तालिबान ने हाल के दिनों में भारत के साथ सकारात्‍मक रुख अपनाया है। तालिबान का रुख तालिबान-1 की तरह नहीं है। तालिबान-2 का रुख एकदम अलग है। ताल‍िबान लंबे समय से भारत से बेहतर संबंध बनाने की कोशिश कर रहा है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अनुच्‍छेद 370 के मामले में भी तालिबान ने कहा था कि कश्‍मीर का मामला भारत का आंतरिक मामला है। वह इस मामले में पाकिस्‍तान का सहयोग नहीं करेगा। उस वक्‍त तालिबान का यह बड़ा बयान था। हाल में तालिबान प्रवक्‍ता ने भारत की सुरक्षा का भरोसा दिलाया है।

Leave a Reply

Your email address will not be published.