ग्लोबल वार्मिग से बढ़ रहा समुद्र का जलस्तर, भारत के तटीय इलाकों पर खतरा, वैज्ञानिकों ने किया आगाह

 ग्लोबल वार्मिग और जलवायु परिवर्तन जैसे खतरों ने पूरी दुनिया के बड़े जोखिम पैदा किए हैं। इनमें एक सबसे बड़ा खतरा समुद्र के जल स्तर में बढ़ोतरी का है। इससे समुद्र तटों के किनारे बसे इलाकों पर अस्तित्व का संकट मंडराने लगा है। भारत के समुद्र तटीय इलाके और द्वीप समूह भी इस जोखिम से अछूते नहीं है। हाल में हुए एक अध्ययन में इस खतरे को बहुत करीब से महसूस किया गया है।

लक्षद्वीप पर मंडराया खतरा

अध्ययन में कहा गया है कि देश की पश्चिमी तट रेखा के पास में स्थित लक्षद्वीप में समुद्र तल में सालाना 0.4 एमएम प्रति वर्ष से लेकर 0.9 एमएम प्रति वर्ष के दायरे में बढ़ोतरी हो सकती है। आलम यह है कि समुद्र के जल स्तर में बढ़ोतरी से यह पूरा द्वीप समूह संवेदनशील स्थिति में है। लक्षद्वीप को लेकर किया गया यह अपनी तरह का पहला अध्ययन है, जिसमें क्लाइमेट माडल अनुमान के आधार पर भविष्य की तस्वीर का खाका खींचने का प्रयास किया गया है।

इन वैज्ञानिकों ने किया अध्‍ययन 

आइआइटी खड़गपुर के वास्तुशिल्प एवं क्षेत्रीय नियोजन और महासागर आभियांत्रिकी एवं नौवहन वास्तुशिल्प की संयुक्त टीम ने इस अध्ययन को मूर्त रूप दिया है। इस अध्ययन के लिए भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत संचालित जलवायु परिवर्तन कार्यक्रम (सीसीपी) ने भी सहयोग किया है।

छोटे द्वीपों को भारी नुकसान

उल्लेखनीय है कि 36 द्वीपों का समूह लक्षद्वीप न केवल अपने प्राकृति सौंदर्य के लिए बल्कि सामुद्रिक जैव-विविधता के दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। अध्ययन के अनुसार समुद्र के स्तर में बढ़ोतरी से लक्षद्वीप के चेलट और अमिनी जैसे छोटे द्वीपों को बहुत नुकसान होगा।

60 फीसद हिस्से के डूबने का खतरा

समुद्र का बढ़ता जल इन द्वीपों की जमीन के एक बड़े हिस्से को निगल सकता है। इन अनुमानों के आधार पर अमिनी में 60 से 70 फीसद के बीच तट रेखा और चेलट में 70 से 80 फीसद तट रेखा पर समुद्र का पानी हावी हो सकता है। मिनिकॉय जैसे बड़े द्वीप और राजधानी कावारत्ती भी बढ़ते पानी के कोप से प्रभावित हो सकते हैं। यहां वर्तमान तटरेखा के 60 फीसद हिस्से का समुद्री जल की चपेट में आने की आशंका है।

सबसे ज्यादा असर लोगों पर

आंद्रोथ द्वीप के समुद्र तल में बढ़ोतरी से सबसे कम प्रभावित होने की संभावना है। इस शोध-अध्ययन के निष्कर्ष ‘रीजनल स्टडीज इन मैरिन साइंस’ में प्रकाशित किए गए हैं। अध्ययन के अनुसार ऐसे घटनाक्रम के व्यापक सामाजिक-आर्थिक प्रभाव भी पड़ेंगे। वैज्ञानिकों का मानना है कि तट रेखा के समीप रहने वाले लोगों पर इसका सबसे ज्यादा असर पड़ेगा।

इकलौते हवाईअड्डे पर खतरा

इतना ही नहीं, इस द्वीप पर मौजूद इकलौता हवाईअड्डा अगाट्टी द्वीप के दक्षिणी सिरे पर अवस्थित है और समुद्र जल स्तर में बढ़ोतरी से उसको भारी नुकसान पहुंचने की आशंका व्यक्त की गई है। वैज्ञानिकों ने खतरे को कम करने के लिए उचित संरक्षात्मक उपायों और समयबद्ध योजनाएं बनाने की अनुशंसा की है। यह शोध भविष्य में किए जाने वाले अध्ययनों में भी उपयोगी सिद्ध हो सकता है। 

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