शारीरिक श्रम से बच्चों में हाई बीपी, हृदय और किडनी रोगों का खतरा हुआ कम

आज बच्चे उन खेलों में कम सक्रिय दिखते हैं, जिनमें शारीरिक गतिविधियां ज्यादा होती हैं। कंप्यूटर, लैपटाप, मोबाइल फोन आदि में ही मनोरंजन की साधन उपलब्ध होने से मैदान पर खेले जाने वाले खेलों के प्रति उनकी रुचि कम हो रही है। साथ ही शारीरिक श्रम भी कम कर रहे हैं। इसका खामियाजा उन्हें भविष्य में उठाना पड़ सकता है। यदि बचपन से ही शारीरिक क्रिया-कलापों पर ध्यान दिया जाए तो इसका लाभ बड़े होने पर भी मिलता है। यह बात एक नवीन अध्ययन में सामने आई है।

फिनलैंड में हुए एक ताजा अध्ययन में पाया गया है कि बच्चे यदि पर्याप्त शारीरिक श्रम करें तो उनकी धमनियों का कड़ापन (स्टिफनिंग) कम किया जा सकता है। बता दें कि धमनियों के सख्त या कड़ा होने से हाई ब्लड प्रेशर, किडनी की बीमारी तथा स्ट्रोक जैसे रोगों का जोखिम बढ़ता है।

यूनिवर्सिटी आफ ईस्टर्न फिनलैंड में हुए फिजिकल एक्टिविटी एंड न्यूट्रिशन इन चिल्ड्रेन (पीएएनआइसी) अध्ययन का यह निष्कर्ष जर्नल आफ स्पो‌र्ट्स साइंसेज में प्रकाशित हुआ है। इस अध्ययन में कई अन्य संस्थानों ने भी सहयोग किया है।

धमनियों के कड़ा होने से सबसे पहला खतरा हृदय रोगों का होता है और इन दिनों यह बच्चों में भी बहुतायत में देखा जा रहा है। इस मामले में वयस्कों को लेकर तो चिंता की जाती है और उन्हें सुस्ती त्याग कर अधिक शारीरिक श्रम के जरिये हृदय रोगों के जोखिम कम करने की सलाह दी जाती है, लेकिन बच्चों की धमनियों के स्वास्थ्य को लेकर प्राथमिक स्कूल के स्तर पर अपेक्षित ध्यान नहीं दिया जाता है।

यह अध्ययन छह से आठ वर्ष के 245 बच्चों पर दो साल तक किया गया है। इसमें धमनियों के कड़ेपन, फैलाव की क्षमता को प्रभावित करने वाले कारकों की पड़ताल की गई। यूनिवर्सिटी आफ ज्वासक्याला के फैकल्टी आफ स्पो‌र्ट्स एंड हेल्थ साइंसेस के डा. ईरो हापाला ने बताया कि हमारे अध्ययन से यह बात सामने आई है कि सामान्य और कठिन शारीरिक श्रम का स्तर बढ़ाने से धमनियां ज्यादा लचीली होती हैं और उसके फैलने की क्षमता भी बढ़ती है। हालांकि, वह यह भी कहते हैं कि इस तरह की शारीरिक सक्रियता बढ़ने का धमनियों पर पड़ने वाले सकारात्मक प्रभाव की व्याख्या पूरे शरीर की संरचना के संदर्भ में नहीं की गई है।

शोधकर्ताओं ने पाया कि ज्यादा शारीरिक श्रम का संबंध बच्चों की धमनियों के स्वस्थ होने से तो है, लेकिन ऐसा ही जुड़ाव सुस्त या कम श्रम से देखने को नहीं मिला।

डा. हापाला ने बताया कि इस तरह हमारे अध्ययन का अहम संदेश यह है कि बचपन से ही यदि शारीरिक श्रम पर जोर दिया जाए तो यह हृदय रोगों की रोकथाम में अहम भूमिका निभा सकता है। हालांकि, उन्होंने इस ओर भी सचेत किया है कि सुस्ती से निकल कर शारीरिक सक्रियता या श्रम बढ़ाने का स्वास्थ्य पर कई स्तरों पर प्रभाव पड़ता है और ऐसी कुछेक खास स्थितियों में यह भी हो सकता है कि धमनियों के स्वास्थ्य से उसका कोई सीधा संबंध देखने को नहीं मिले।

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