शहबाज का इमरान पर फूटा गुस्सा, कहा- उनकी सरकार में 2 करोड़ लोग पहुंचे गरीबी रेखा के नीचे
इस्लामाबाद। पाकिस्तान नेशनल असेंबली के नेता विपक्ष शहबाज शरीफ ने इमरान खान की सरकार के बजट प्रस्ताव को झूठा करार दिया है। उन्होंने असेंबली में दिए गए अपने भाषण में इमरान खान सरकार को जमकर कोसा और कहा कि उनकी वजह से 50 लाख लोगों को अपनी नौकरियों से हाथ धोना पड़ा है। तीन दिनों तक असेंबली में मचे शोर-शराबे के बाद जब उन्हें बोलने का मौका मिला तो उन्होंने पाकिस्तान की इमरान सरकार को जमकर खरी-खोटी सुनाई। उन्होंने अपने भाषण में कहा कि यदि यही नया पाकिस्तान है तो इससे बेहतर पुराना पाकिस्तान ही था।
नेता विपक्ष ने कहा कि बीते तीन वर्षों में इमरान खान ने लोगों पर इतने कर लगाए कि गरीबों का खाना भी आधा हो गया। मौजूदा समय में इमरान सरकार ने देश में भूखमरों और नाउम्मीद लोगों की एक बड़ी जमात पैदा कर दी है। वहीं अब सरकार ने वर्ष 2021-22 के लिए जो बजट पेश किया है वो केवल मंहगाई की दर को ही बढ़ाने का काम करेगा या फिर गरीब लोगों को और गरीबी में ढकेल देगा।
शहबाज ने असेंबली में पाकिस्तान में गरीबी के आंकड़ों को उजागर करते हुए कहा कि देश में इमरान खान सरकार के दौरान दो करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे चले गए हैं। वहीं लोगों की आय में करीब 20 फीसद की गिरावट आई है। लोग पूछ रहे हैं कि आखिर एक करोड़ नौकरियों की जो बात इमरान खान ने की थी वो कहां हैं। यही वजह है कि सरकार इस बजट से जो ख्वाब दिखा रही है वो बजट ही पूरी तरह से झूठा है।
नवाज ने कहा कि इससे पहले किसी ने ये ख्वाब में भी नहीं सोचा था कि रियासत ए मदीना में किसी को भूखा भी सोना पड़ेगा। इमरान पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने कहा कि ये कहते थे कि नया पाकिस्तान बनाएंगे। लेकिन मौजूदा समय में देश की जिस तरह से प्रगति हो रही है उस हिसाब से तो पुराना पाकिस्तान ही बेहतर था। असेंबली में गुरुवार को दिए अपने संबोधन में उन्होंने सभी विपक्षी पार्टियों से कहा कि वो एकजुट हों और किसी भी सूरत से इस बजट को पास न होने दें।
शहबाज ने सरकार से मांग की है कि जरूरी चीजों से कर को खत्म किया जाना चाहिए। साथ ही बच्चों के दूध से भी बढ़ाई गए ड्यूटी को वापस लेना चाहिए। इसके अलावा लेबर की कम से कम सैलरी 25 हजार और सरकारी कर्मचारियों की सैलरी में 20 फीसद का इजाफा होना चाहिए। उन्होंने ये भी आरोप लगाया कि इमरान सरकार की वजह से वर्तमान में प्रांतीय सरकारों और केंद्र के बीच विश्वास कम हुआ है।