मुंबई : फिर जागा शिवसेना का परमबीर प्रेम लिखा
‘तबादला होने का यह मतलब नहीं है कि वे दोषी हैं’
मुंबई : भले ही राज्य के गृहमंत्री ने स्पष्ट शब्दों में यह कहा है कि परमबीर सिंह का तबादला उनकी गलतियों के चलते हुए है लेकिन शिवसेना ये कतई मानने को तैयार नहीं है। शिवसेना ने आज फिर अपने मुखपत्र सामना के जरिये यह लिखा है, ‘मुंबई पुलिस आयुक्त के पद से परमबीर सिंह को बदल दिया गया इसका मतलब वे गुनहगार सिद्ध नहीं होते। मुंबई पुलिस आयुक्त पद की कमान उन्होंने अत्यंत कठिन समय में संभाली थी। कोरोना संकट से लड़ने के लिए उन्होंने पुलिस में जोश निर्माण किया था। धारावी जैसे क्षेत्र में वे खुद जाते रहे।
सुशांत, कंगना जैसे प्रकरणों में उन्होंने पुलिस का मनोबल टूटने नहीं दिया। इसलिए आगे इस प्रकरण में सीबीआई आई तो भी मुंबई पुलिस की जांच सीबीआई के पास नहीं जा सकी। टीआरपी घोटाले की फाइल उन्हीं के समय में खोली गई। परमबीर सिंह पर दिल्ली की एक विशिष्ट लॉबी का गुस्सा था, जो कि इसी वजह से था। उनके हाथ में जिलेटिन की 20 छड़ें पड़ गईं उन छड़ों में धमाका हुए बगैर ही पुलिस दल में दहशत फ़ैल गई। नए आयुक्त हेमंत नगराले को साहस व सावधानी से काम करना होगा।
सामना ने लिखा है कि मुंबई के कारमाइकल रोड पर एक कार मिली थी, जिसमें जिलेटिन की 20 छड़ें रखी हुई थीं। उन छड़ों में विस्फोट नहीं हुआ परंतु राजनीति और प्रशासन में बीते कुछ दिनों से ये छड़ें धमाके कर रही हैं। इस पूरे मामले में अब मुंबई पुलिस के आयुक्त परमबीर सिंह को उनके पद से जाना पड़ा है। राज्य के पुलिस महासंचालक रहे हेमंत नगराले अब मुंबई पुलिस के नए आयुक्त बन गए हैं, तो वहीं रजनीश सेठ को पुलिस महासंचालक नियुक्त किया गया है। जिसे हम सामान्य बदली कहते हैं ये वैसी बदली नहीं है। एक विशिष्ट परिस्थिति में सरकार को ये उथल-पुथल करनी पड़ी है।
सामना ने लिखा है कि विपक्ष ने इस मामले में कुछ सवाल खड़े किए हैं ये सच है। परंतु राज्य का आतंक निरोधी दस्ता इस मामले में हत्या का मामला दर्ज करके जांच कर रहा था। इसी दौरान ‘एनआईए’ ने आनन-फानन में जांच की कमान अपने हाथ में ले ली। महाराष्ट्र सरकार को किसी तरह से बदनाम कर सकें तो देखें, इसके अलावा कोई और ‘नेक मकसद’ इसके पीछे नहीं हो सकता है। क्राइम ब्रांच के एक सहायक पुलिस निरीक्षक के इर्द-गिर्द यह मामला घूम रहा है और इसके पीछे का मकसद जल्द ही सामने आएगा।
सामना ने लिखा है कि किसी भी हाल में इसके पीछे आतंकवाद के तार न जुड़ने के बावजूद इस अपराध की जांच में ‘एनआईए’ का घुसना, ये क्या मामला है? आतंकवाद से संबंधित प्रकरणों की जांच ‘एनआईए’ करती है। परंतु जिलेटिन की छड़ों की जांच करनेवाली ‘एनआईए’ ने उरी हमला, पठानकोट हमला व पुलवामा हमले में क्या जांच की, कौन-सा सत्यशोधन किया, कितने गुनहगारों को गिरफ्तार किया? ये भी रहस्य ही है। लेकिन मुंबई में 20 जिलेटिन की छड़ें ‘एनआईए’ के लिए बड़ी चुनौती ही सिद्ध होती नजर आ रही हैं।
सामना ने लिखा है कि मुंबई पुलिस का मनोबल गिराने का प्रयास इस दौर में चल रहा है। विपक्ष को कम-से-कम इतना पाप तो नहीं करना चाहिए। विपक्ष ने महाराष्ट्र की सत्ता में काबिज होने का सपना पाला होगा तो यह उनकी समस्या है। परंतु ऐसी शरारत करने से उन्हें सत्ता की कुर्सी मिल जाएगी ये भ्रम है। पुलिस जैसी संस्था राज्य की रीढ़ होती है। उसकी प्रतिष्ठा का सभी को जतन करना चाहिए। विपक्ष महाराष्ट्र के प्रति निष्ठावान होगा तो वह पुलिस की प्रतिष्ठा को दांव पर लगाकर राजनीति नहीं करेगा। मनसुख प्रकरण के पीछे का पॉलिटिकल बॉस कौन? यह उनका सवाल है। इसका जवाब उन्हें ही ढूंढ़ना चाहिए। परंतु ऐसे प्रकरणों में कोई भी पॉलिटिकल बॉस नहीं होता है।