संजय राउत ने महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल के राज्यपाल पर कसा तंज, कहा – देश में दो ही राज्यपाल हैं
मुंबई, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र में राज्य सरकार और राज्यपाल के बीच तनातनी अब जगजाहिर है। दोनों में टकराव के कई मौके आए दिन सामने आते रहते हैं। इसे लेकर शुक्रवार को शिवसेना नेता संजय राउत ने दोनों प्रदेशों के राज्यपालों पर तंज कसा है। मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा कि देश में इस वक्त दो ही प्रदेशों महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में राज्यपाल हैं। बाकी जगह राज्यपाल हैं या नहीं उन्हें नहीं पता है। दरअसल, राउत दोनों प्रदेशों के राज्यपालों की प्रदेश सरकारों से टकराहट पर तंज कस रहे थे। महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने हाल ही में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को प्रदेश के मंदिरों को अनलॉक किए जाने को लेकर पत्र लिखा था। इस पर खूब बवाल हुआ। राज्यपाल ने ठाकरे को पत्र में पूछा कि क्या वह अब सेक्युलर हो गए हैं। इस पर शिवसेना की ओर से भी प्रतिक्रिया दी गई। ठाकरे ने जहां धीरे-धीरे अनलॉक किए जाने की दलील दी, वहीं पार्टी के नेता संजय राउत ने राज्यपाल की संविधान के प्रति निष्ठा पर ही सवाल खड़े कर दिए।
राउत ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार संविधान में दर्ज धर्मनिरपेक्षता शब्द के अनुसार काम कर रही है जबकि ऐसा लगता है कि राज्यपाल संवैधानिक प्रावधानों को मानने के लिए तैयार नहीं हैं। कोश्यारी पर इस पलटवार के बाद शुक्रवार को एक बार फिर संजय राउत ने राज्यपाल पर निशाना साधा है। राउत ने कहा कि राज्यपाल भारत सरकार और राष्ट्रपति का राजनीतिक एजेंट होता है। पॉलिटिकल एजेंट इसलिए क्योंकि सब राजनीतिक काम करते हैं।
उन्होंने आगे कहा, ‘आजकल तो पूरे देश में सिर्फ दो ही राज्यपाल हैं। बाकी कहां राज्यपाल हैं या नहीं, मुझे पता नहीं। महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल। क्योंकि वहां की जो सरकारें हैं, वो विरोधियों की सरकारें हैं।’ महाराष्ट्र के अलावा पश्चिम बंगाल में भी राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच विवाद के मौके लगातार बनते रहे हैं। सीएम ममता बनर्जी कई बार राज्यपाल जगदीप धनखड़ को उनके अधिकार और कर्तव्यों की याद दिला चुकी हैं।
राज्य पुलिस अधिकारी को कानून-व्यवस्था को लेकर राज्यपाल धनखड़ ने पत्र लिखा था, जिस पर ममता बनर्जी उन पर जमकर बरसी थीं। उन्होंने धनखड़ को संविधान के दायरे में रहकर काम करने की नसीहत तक दे डाली थी। सीएम ने कहा था कि अनुच्छेद 163 के अनुसार, राज्यपाल को अपने मुख्यमंत्री और उनके मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के अनुसार कार्य करना अनिवार्य है। उन्होंने चेतावनी भरे लहजे में कहा था कि राज्यपाल शक्तियों की सीमा पार कर मुख्यमंत्री पद की अनदेखी करने और राज्य के अधिकारियों को आदेश देने से दूर रहें।