कागजों में सिमटा रह गया क्लस्टर परियोजना का काम
ठाणे, सोमवार तड़के करीब सवा तीन बजे ठाणे के भिवंडी स्थित 37 साल पुरानी तीन मंजिला इमारत ताश के पत्तों की तरह भरभराकर ढह गई। गहरी नींद में सो रहे 20 से ज्यादा लोग मौत का शिकार हुए। घटना के बाद दो मनपा अधिकारियों को निलंबित किया गया और उनके खिलाफ़ जांच का आदेश दिया गया है। मनपा आयुक्त पंकज आशिया ने हादसे की जांच के लिए एक कमिटी भी बनाई है। पुलिस ने बिल्डर सैयद जिलानी के खिलाफ मामला दर्ज किया है। ठाणे जिले में इस तरह इमारत का गिरना कोई नई घटना नहीं है। कुछ साल पहले ठाणे के शिल डायघर स्थित लकी कंपाउंड में इमारत गिरने से मलबे की चपेट में आने से 74 लोगों की मौत हुई थी। ठाणे शहर में इमारत गिरने की अन्य दुर्घटनाओं में करीब 50 लोगों की जानें गई हैं। ठाणे शहर सहित जिले के विभिन्न हिस्से में बड़ी संख्या में वैध-अवैध खतरनाक, जर्जर इमारतें, चालें हैं। अपनी जान को जोखिम में डाल लाखों लोग इनमें गुजर बसर करने को मजबूर हैं। लंबी राजनीतिक लड़ाई और आंदोलन के बाद ठाणे शहर में
क्लस्टर परियोजना को आख़िरकार लागू किया गया। मुख्यमंत्री बनने के बाद पहली बार 5 फरवरी को ठाणे शहर आए मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने वागले इस्टेट में महत्वाकांक्षी क्लस्टर परियोजना का शिलान्यास किया था। उद्धव ठाकरे ने अपने भाषण में उक्त परियोजना को देश की सबसे बड़ी परियोजना बताया था। मुख्यमंत्री ने क्लस्टर योजना की तारीफ करते हुए कहा था कि अपनी जान को जोखिम में डालकर खतरनाक इमारतों में रहने वालों के लिए योजना वरदान है। इसके बाद शहर की खतरनाक इमारतों में रहने वालों को उनके शीघ्र पुनर्वसन की आस जग गई थी। लेकिन कोरोना संक्रमण के चलते शिलान्यास के बाद परियोजना आगे नहीं बढ़ पाई और कागज पत्रों में सिमट कर रह गई है। मुंबई छोड़ ठाणे और आसपास के एमएमआर रीजन के विकास के लिए स्वतंत्र एसआरए प्राधिकरण की घोषणा की गई है, लेकिन उस पर अभी ठोस कुछ नहीं हो पाया है। भिवंडी, कल्याण-डोंबिवली, उल्हासनगर, अंबरनाथ, बदलापुर इन स्थानों पर भी बड़ी संख्या में खतरनाक, जर्जर इमारतें हैं। मुंब्रा-दिवा परिसर में भी बड़ी संख्या में खतरनाक इमारतें हैं। इसके लिए भी आगे कुछ नहीं हुआ है।
एसआरए योजना का भी यही हाल
एसआरए योजना को लेकर भी लोगों का अनुभव ठीक नहीं रहा है। ठाणे शहर में 2016 में एसआरए लागू होने के बाद से करीब 25 से अधिक काम शुरू हुए, जिनमें से महज 4 से 5 को ही मंजूरी मिली है। लोगों का आरोप है कि उक्त योजना के तहत बिल्डर काम तो ले लेते हैं, लेकिन कई सालों ऐसे ही रहना पड़ता है। हर साल वर्षा पूर्व मनपा की तरफ से खतरनाक इमारतों की सूची बनाई जाती है। इमारतों में रहने वालों को नोटिस दिया जाता है। खाना-पूर्ति होती है। लेकिन आशियाना छीनने के डर से कोई घर से बाहर नहीं निकलता है। लोग जान को खतरे में डालकर वहीं डटे रहते हैं। और फिर ऐसे ही कोई रात उनके लिए काली रात साबित होती है और हादसे में लोग मौत के आगोश में समा जाते हैं।